Wednesday, August 17, 2011

कलम का सिपाही, मौत का राही



राष्ट्र की रक्षा के लिए सेना के बाद दूसरा स्थान पत्रकार का आता है। अपनी कलम की ताकत से वह भ्रष्टाचार एवं देश की सुरक्षा पर सेंध लगाने के लिए गिद्ध की तरह नजर गड़ाएं बैठे असामाजिक तत्वों पर अपनी पैनी नजर रख उन्हें उजागर करता है। लेकिन कभी-कभी कलम के सिपाही पत्रकार की खुद की जिंदगी खतरे में पड़ जाती है। सत्य को उजागर करने पर कई लोग उसके जान के दुश्मन बन जाते हैं। विडंबना यह है कि सेना के पास तो आत्मरक्षा के लिए हथियार है लेकिन पत्रकार के पास केवल कलम, जो सत्य उजागर करने के लिए तो एक सशक्त हथियार है लेकिन आत्मरक्षा के लिए नहीं। जब कोई उसकी हत्या के इरादे से उसे निशाना बनाता है तो वह आत्मरक्षा में असमर्थ होता है। पत्रकार को अपना कार्य करते समय यदि कोई मारता है तो मरने के बाद उसे वो सम्मान प्राप्त नहीं होता जो एक सैनिकों को प्राप्त होता है, जबकि दोनों का काम जोखिमपूर्ण और राष्ट्रवाद से ओत प्रोत होता है।

दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का दावा करने वाले भारत में अभी तक पत्रकारों को सुरक्षा प्रदान करने वाला कोई ठोस कानून नहीं है। सत्य की कलम से लिखने वाले पत्रकार पर मौत का साया हरदम मंडराता रहता है। पत्रकारों की सुरक्षा से संबंधित कानून को जब भी लाने की बात की गई तो उस पर कभी भी गंभीरता से विचार नहीं किया गया। आखिर ऐसा क्या है, जो देश की सत्ता पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं होने देती? क्यों कानून लाने की बात पर वह चुप्पी साध लेती है? भारत के संविधान में जहां सूचना लेने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है, वहां इस अधिकार के कई बार हनन के बावजूद सरकार क्यों कुछ नहीं करती? क्या यह लोकतंत्र और मौलिक अधिकारों पर प्रश्न चिन्ह नहीं है?

हाल ही में खोजी पत्रकार ज्योतिर्मय डे की हत्या ने इन प्रश्नों को एक बार फिर से उजागर कर दिया है। डे की दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। अंडरवर्ल्ड की गतिविधियों को उजागर करने वाले डे ने तेल माफियाओं के काले धंधे को भी उजागर किया था। वह चंदन की तस्करी का खुलासा भी करना चाहते थे। इतने बड़े स्तर पर हो रही इन गतिविधियों को उजागर करने की कीमत डे को अपनी जान गंवाकर चुकानी पड़ी। जे डे की हत्या के पीछे कभी तेल माफियाओं ,तो कभी अंडरवर्ल्ड का हाथ बताया जा रहा है । लेकिन सबसे शर्मनाक बात है कि मुंबई सरकार इस हत्याकांड की सीबीआई जांच कराने से मना कर रही है जबकि मुंबई पुलिस से अभी तक यह मामला सुलझ नहीं सका। ज्यादा समय बीतने पर हत्या के आरोपी सभी सबूत मिटाने में सफल हो जाएंगे। आखिर ऐसा क्या है जो सरकार इस मामले की सीबीआई जांच कराने से कतरा रही है? इससे पहले पाकिस्तान के पत्रकार सलीम शहजाद को भी मार दिया गया था। उन्होंने अलकायदा और पाकिस्तानी सेना के बीच संबंधों को उजागर किया था।

पत्रकारों की सुरक्षा के लिए बनी संस्था सीपीजे के मुताबिक भारत में वर्ष 1992 से लेकर अब तक कुल 44 पत्रकार मारे जा चुके हैं,जिनमें से केवल 27 पत्रकारों की मौंत की गुत्थी ही सुलझ पाई है। इन पत्रकारों की सूची नीचे दी गई है।

1. ज्योतिर्मय डे - मिडडे, 11 जून 2011, मुंबई,गोली मारकर हत्या

2. उमेश राजपूत - नई दुनिया, 22 फरवरी 2011, रायपुर,गोली मारकर हत्या

3. विजय प्रताप सिंह- इंडियन एक्सप्रेस, 20 जुलाई 2010, इलाहबाद, कैबिनेट मंत्री नन्द गोपाल गुप्ता पर हुए हमले में मौत

4. हेमन्त पांडे - फ्रीलांसर, 2 जुलाई 2010, आन्ध्र प्रदेश, माओवादियों और पुलिस के बीच मुठभेड़ के दौरान मौत

5. विकास रंजन - हिन्दुस्तान, 25 नवंबर 2008, रौसेरा, मोटरबाइक सवार तीन युवकों द्वारा गोली मारकर हत्या

6. जगजीत सैकिया - अमर असम, 20 नवंबर 2008, असम, गोली मारकर हत्या

7. जावेद अहमद मिर - डेली ट्रिब्यून,13 अगस्त 2008, जम्मू-कश्मीर, अलगाववादियों के प्रदर्शन के दौरान पुलिस मुठभेड़ में मौत

8. अशोक सोढी - डेली एक्सेल्सर, 11 मई 2008, जम्मू-कश्मीर, आतंकी मुठभेड़ के दौरान फोटोग्राफर सोढी की मौत

9. मोहम्मद मुस्लिमुद्दीन - असमिया प्रतिदिन,1 अप्रैल 2008, असम,छः हमलावरों द्वारा गोली मारकर हत्या

10. अरूण नारायण देकाते - तरूण भारत, 10 जून 2006, नागपुर, चार अज्ञात युवकों द्वारा हमला

11. प्रहलाद गौला - असमिया खबर, 6 जनवरी 2006, असम, चाकू मारकर हत्या

12. दिलीप मोहापात्र - अजी कगोज, 8 नवंबर 2004, उड़ीसा, अपहरण कर हत्या

13. असिया जिलानी - फ्रीलांसर, 20 अप्रैल 2004, कश्मीर, बम धमाके में मौत

14. वीराबोएना यदागिरी - आन्ध्र प्रभा, 21 फरवरी 2004, आन्ध्र प्रदेश, चाकू मारकर हत्या

15. परमानंद गोयल - पंजाब केसरी, 18 सितंबर 2003, हरियाणा, तीन अज्ञात युवकों द्वारा गोली मारकर हत्या

16. इंद्रा मोहन हकसम - अमर असम, 24 जून 2003, असम, उल्फा द्वारा अपहरण कर हत्या

17. परवाज़ मोहम्मद सुल्तान - नाफा समाचार संगठन, 31 जनवरी 2003, श्रीनगर, गोली मारकर हत्या

18. रामचंद्र छतरपति - पूरा सच, 21 नवंबर 2002, हरियाणा, गोली मारकर हत्या

19. यम्बेम मेघजीत सिंह - नॉर्थईस्ट विजन, 13 अक्टूबर 2002, मणिपुर, प्रताड़ना के पश्चात गोली मारकर हत्या

20. पारितोष पांडे - जनसत्ता एक्सप्रेस, 14 अप्रैल 2002, लखनऊ,गोली मारकर हत्या

21. मूलचंद यादव - फ्रीलान्सर, 30 जुलाई 2001, झांसी, गोली मारकर हत्या

22. थऊनाओजम ब्रजमणि सिंह - मणिपुर न्यूज, 20 अगस्त 2000, मणिपुर, गोली मारकर हत्या

23. प्रदीप भाटिया - द हिन्दुस्तान टाइम्स, श्रीनगर, 10 अगस्त 2000, बम धमाके में भाटिया समेत छः अन्य पत्रकारों की मौत

24. वी. सेल्वरज - नक्कीरन, 31 जुलाई 2000, तमिलनाडु, चाकू मारकर हत्या

25. अधीर राय - फ्रीलांसर, 18 मार्च 2000, झारखंड, गोली मारकर हत्या

26. एन.ए. लालरूहलू - शान, 10 अक्टूबर 1999, मणिपुर, गोली मारकर हत्या

27. इरफान हुसैन - आउटलुक, 13 मार्च 1999, नई दिल्ली, अपहरण कर चाकू मारकर हत्या

28. शिवानी भटनागर - इंडियन एक्सप्रेस, 23 जनवरी 1999, नई दिल्ली, चाकू मारकर हत्या

29. एस. गंगाधर राजू - ईटीवी, 19 नवंबर 1997, हैदराबाद, कार बम धमाके में मौंत

30. एस. कृष्णा - ईटीवी, 19 नवंबर 1997, हैदराबाद, कार बम धमाके में मौंत

31. जी. राजशेखर - ईटीवी, 19 नवंबर 1997, हैदराबाद, कार बम धमाके में मौत

32. जगदीश बसु - ईटीवी, 19 नवंबर 1997, हैदराबाद, कार बम धमाके में मौत

33. पी. श्रीनिवास राव - ईटीवी, 19 नवंबर 1997, हैदराबाद, कार बम धमाके में मौत

34. सईदन शफि - दूरदर्शन टीवी, 16 मार्च 1997, श्रीनगर, गोली मारकर हत्या

35. अल्ताफ अहमद फक्टू - दूरदर्शन टीवी, 1 जनवरी 1997, श्रीनगर, गोली मारकर हत्या

36. पराग कुमार दास - असमिया प्रतिदिन, 17 मार्च 1996, असम, गोली मारकर हत्या

37. गुलाम रसूल शेख - रहनुमा-ए-कश्मीर, 10 अप्रैल 1996, कश्मीर, अपहरण कर हत्या

38. मुस्ताक अली - एजेन्सी फ्रांस प्रेस, एशियन न्यूज इंटरनेशनल, 10 सितंबर 1995, श्रीनगर,लेटर बम

धमाके में मौत

39. गुलाम मुहम्मद लोने - फ्रीलांसर, 29 अगस्त 1994, कश्मीर, गोली मारकर हत्या

40. दिनेश पाठक - संदेश, 22 मई 1993, बड़ोदा, चाकू मारकर हत्या

41. भोला नाथ मासूम - हिंद समाचार, 31 जनवरी 1993, राजपुर, गोली मारकर हत्या

42. एम.एल. मनचंदा - ऑल इंडिया रेडियो, 18 मई 1992, पंजाब, अपहरण कर हत्या

43. राम सिंह बिलिंग - अज़दी आवाज़, डेली अजीत, 3 जनवरी 1992, जालंधरहिरासत में मौत

44. बख्शी तीरथ सिंह - हिन्द समाचार, 27 फरवरी 1992, धुरी अज्ञात युवकों द्वारा हत्या

इन पत्रकारों में से अधिकतर पत्रकारों की हत्या गोली मारकर की गई है। अपहृत हुए पत्रकारों को तो बुरी तरह से प्रताड़ित किया गया है। इसके अलावा पत्रकारों पर हमलों की खबरें तो आती ही रहती है। हाल ही में यूपी पुलिस द्वारा किया गया पत्रकार पर हमला, छत्तीसगढ़ में असामाजिक तत्वों द्वारा पत्रकारों पर हमलों ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है।

पत्रकारिता की नींव राष्ट्रवाद, समाज के सही दिशा निर्माण और लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए रखी गई थी। पत्रकारों को संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों की धारा 19(1) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। इसी के तहत वह निर्भीकतापूर्वक अपनी बात को देश के सामने रखता है। लेकिन पत्रकारों की इस स्वतंत्रता को चोट पहुंचाई जा रही है और उसकी आवाज को दबाने का पुरजोर प्रयास किया जा रहा है। यह संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकार का उल्लंघन तो है ही, लोकतंत्र पर भी आघात है। यदि इसी तरह पत्रकारों पर हमलों की घटनाएं होती रही तो बहुत कम पत्रकार निर्भीक छवि वाले बचेंगे। ऐसी स्थिति में लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी लड़खड़ा जाएगा। आज पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और इससे सम्बन्धित उपयोगी कानून लाने की जरूरत है जिससे पत्रकार निर्भीकतापूर्वक अपने विचार व्यक्त कर सकें।

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