Monday, January 28, 2013

आखिर कब तक?



दिलवालों की दिल्ली नाम से पुकारी जाने वाली राजधानी में 16 दिसंबर की रात को ऐसी शर्मसार घटना हुई कि सभी देशवासियों की धड़कनें तेज हो गई। 23 वर्ष की एक मासूम छात्रा का चलती बस में सामूहिक बलात्कार किया गया और उसको व उसके दोस्त को इन दरिंदों ने बड़ी बेरहमी से पीटकर सर्द रात में अर्धनग्न अवस्था में सड़क पर फेंक दिया। अगले दिन जब इस घटना का सारे देश को पता चला तो वह इस घटना को सुनकर ही कांप उठे और देशभर में आंदोलन खड़ा हो गया। किन्तु महिलाओं को अपनी जागीर समझने वाले इन दरिंदों का हौसला कम होने के बजाए बढ़ता चला गया। महिलाओं की सुरक्षा को लेकर एक तरफ आंदोलन चल रहा था तो वहीं दूसरी तरफ अन्य और अधिक बलात्कार की खबरें सामने आई। देखते ही देखते ये दिलवालों की दिल्ली दरिंदों की दिल्ली में तब्दील हो गई। आज आलम यह है कि दिल्ली में लड़कियां घर से बाहर कदम रखने में भी घबरा रही हैं। क्या पता ये दरिंदे किस रूप में उनके सामने आ जाए? यह दरिंदे केवल दिल्ली में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में फैले हुए हैं। कुछ तो अपने पद का ही दुरूपयोग कर महिलाओं के साथ दुष्कर्म करते हैं। 16 दिसंबर की रात लड़की के साथ जो हुआ उस पर बुद्धिजीवियों ने भी अपने विचार रखने शुरू किए। किसी ने महिलाओं को घर में रहने की नसीहत दी तो किसी ने उस लड़की पर सारा दोश मढ़ दिया। किसी ने महिलाओं के मेकअप को इसका जिम्मेदार माना,तो किसी ने भारतीय संस्कृति की दुहाई देनी शुरू कर दी। इन सबके बीच किसी ने भी यह समझने और महसूस करने की जरूरत नहीं समझी कि यह सब सुनकर उसके परिवार वालों पर क्या बीती होगी? जो देश की महत्वाकांक्षी महिलाएं हैं उनके मनोबल पर क्या प्रभाव पड़ा होगा? क्या यही हमारे समाज के खुले विचार हैं? कब तक भारतीय संस्कृति की दुहाई देकर महिलाओं को दबाने की और पुरूषों की कठपुतली बनाने की कोशिश की जाती रहेगी? एक बार एक एसएमएस पढ़ा था कि अगर तुमसे कोई गलती हो जाए तो यह सोचो कि इसका दोष किस पर मढ़ना है। उस समय यह हास्यास्पद लगा किंतु आज इसके असली मायने समझ आते हैं। समाज में कोई भी अपनी गलती स्वीकार न करके बस दूसरों को ही ढूंढते हैं जिस पर दोष मढ़ा जाए। चंद लोग इकट्ठा होकर आपस में बतियाते हैं और यह दिखाने का प्रयास करते हैं कि वह इसके प्रति कितने गंभीर है, किंतु असल स्थिति तो यह है कि रास्ते में अगर किसी महिला के साथ छेड़छाड़ हो भी तो वह चुपचाप देखते रहते हैं। यहां इस प्रसंग में हालिया उदाहरण है। एक 16 वर्ष की लड़की के साथ शराब पीकर एक कंडक्टर ने छेड़छाड़ शुरू की तो ड्राइवर ने उसे नजरंदाज करना बेहतर समझा और एक कंडक्टर ने इसे रोकने की कोशिश की तो शराबी कंडक्टर ने उसे धमकी दी और वह विरोध जताने वाला कंडक्टर वापिस पीछे जाकर बैठ गया। छेड़डाड़ का सिलसिला यूंही चलता रहा। आंखिरकार पुलिस की बस पर नजर पड़ गयी तो उस लड़की को बचा लिया गया। लेकिन जिस दरिंदगी से पुलिस ने उसे बचाया था वह पिछले छह महीनों से उस दरिंदगी को झेल रही थी। उसका अपना ही भाई छह महीनों से उसका बलात्कार कर रहा था जिससे बचकर वह अनाथ आश्रम जा रही थी। भारत देश में एक ओर जहां कन्याओं को देवी मां के रूप में पूजा जाता है व उनके हाथ से किसी कार्य की शुरूआत को शुभ माना जाता है, वहीं दूसरी ओर इन पर गलत नजर डालने वालों की भी कमी नहीं है। महिलाओं के साथ बलात्कार के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है।
राष्ट्रीय अपराध रिकाॅर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2011 में बलात्कार के 24,206 मामले सामने आए। यह आंकड़ा पुलिस थानों पर दर्ज एफआईआर पर आधारित है। इसका औसत देखा जाए तो भारत में प्रतिदिन लगभग 67 बलात्कार होते हैं। बलात्कार के मामले इससे भी ज्यादा हो सकते हैं क्योंकि परिवार की इज्जत व अन्य कारणों से कई घटनाएं दबा दी जाती हैं। हाल ही में एक पंचायत ने ही एक महिला के साथ सामूहिक दुष्कर्म करने वालों को यह कहकर माफ कर दिया कि इससे परिवार व उनके समूह की इज्जत खराब होगी। आंखिर अपनी ही महिलाओं पर हो रहे दुष्कर्म पर चुप्पी साधने वालों की भला क्या इज्जत होगी? क्या उन पंचों ने यह फैसला देते हुए उस लड़की की हालत के बारे में सोचा होगा? इन पंचायतों की स्थापना सरकार की विकास नीतियों को गांव-गांव में पहुंचाने के लिए की गई थी, न कि उन्हें इस तरह के फैसले या फरमान सुनाने का अधिकार दिया गया था। भारत में महिलाओं के खिलाफ बलात्कार के अलावा भी कई अत्याचार होते हैं जिनमें छेड़छाड,़ घरेलू हिंसा, उपेक्षा आदि शामिल हैं। आंखिर कब तक महिलाएं ये सब झेलती रहेंगी? कब तक उन्हें इसी तरह दबाया जाता रहेगा? कब तक उन्हें इन दरिंदों का इसी तरह शिकार होना पड़ेगा? कब तक मनचलों की हरकतों को नजरंदाज करना होगा? उनके साथ हुए इन सब अत्याचारों के पीछे क्या केवल वही दोषी हैं? क्या समाज, पुलिस सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं हैं? इन प्रश्नों का हल बहुत जरूरी है क्योंकि भारत में रहने वाली आधी आबादी की आबरू आज खतरे में है। इस समस्या को हल करने के लिए सभी को अपनी जिम्मेदारियों को समझना होगा।
पुलिस की जिम्मेदारी
पुलिस को इन घटनाओं को रोकने के लिए अपराधियों को जल्द से जल्द पकड़कर कार्रवाई करनी चाहिए और बलात्कार पीडि़ता से सभ्य सवाल पूंछने चाहिए। हाल ही में एक बलात्कार पीडि़त महिला ने पुलिस के सवालों से परेशान होकर ही आत्महत्या कर ली थी। पुलिस थानों में अधिक से अधिक महिला काॅन्सटेबलों को नियुक्त करने का फैसला सकारात्मक है।साथ ही हर उस स्थान पर जहां महिलाओं का आवागमन होता है जैसे महिला कालेजों, आफिसों आदि पर महिला पुलिस की तेनाती आवश्यक है।
कानून में बदलाव
सरकार को बलात्कार के खिलाफ कानूनों को और कड़ा करना चाहिए ताकि दरिंदों में कानून का डर बना रहे। कई देश ऐसे हैं जहां बलात्कारी को दोषसिद्धि होने पर तुरन्त मौत की सजा दे दी जाती है किन्तु भारत में इंसाफ मांगते-मांगते ही कई वर्षों का समय बीत जाता है। भारत में बलात्कार की दोषसिद्धि होने पर कड़ी सजा का प्रावधान करना चाहिए।
समाज की जिम्मेदारी
समाज को भी महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों पर चुप नहीं बैठना चाहिए। रास्ते में किसी महिला के साथ कोई अभद्र व्यवहार करे तो उस पर जरूर आवाज उठानी चाहिए और महिलाओं को पूरा सम्मान दिया जाना चाहिए।
स्वयं महिलाओं की जिम्मेदारी
महिलाओं को अपनी रक्षा के लिए कुछ उपाय अवश्य करने चाहिए। उन्हें ऐसे किसी भी यातायात में नहीं बैठना चाहिए जिसके पास सवारी ले जाने का परमिट न हो। किसी पर जरा सा भी संदेह होने पर चुप्पी न साधकर शोर मचाना चाहिए और पुलिस को इसकी जानकारी देनी चाहिए। सुनसान इलाकों में जाने से बचना चाहिए और रात को घर से तभी बाहर निकलना चाहिए जब उनके परिवारजन या परिचित साथ हो।
आज यदि हम महिलाओं की सुरक्षा के प्रति एक कदम बढ़ाएंगे तो समाज में धीरे-धीरे एक अनुकूल वातावरण का निर्माण होगा।

Wednesday, January 2, 2013

जैन मुनि प्रबलसागर जी महाराज पर जानलेवा हमला



गुजरात स्थित सिद्धक्षेत्र गिरनार जी की पांचवी टोक पर मंगलवार को स्थानीय पंडो ने दिगम्बर जैन मुनि श्री प्रबल सागर जी महाराज पर जानलेवा हमला कर दिया। 
प्राप्त जानकारी के अनुसार साधुवेशधारी एक युवक ने प्रबल सागर जी महाराज (शिष्य आचार्य श्री पुष्पदंत सागर जी महाराज) पर चाकू से पांच बार वार किया जिससे वह वहीं बेहोश हो गए। वहां मौजूद श्रद्धालुओं ने महाराज जी को बेहोशावस्था में ही एक स्थानीय निजी अस्पताल में भर्ती कराया। अत्यधिक रक्त स्राव के कारण उनकी हालत गंभीर बनी हुई थी जिसके कारण उनकी दीक्षा विच्छेद कराकर तुरन्त इलाज कराया गया। इस समय उनकी हालत स्थिर बताई जा रही है। 

बताते चलें कि प्रबलसागर जी महाराज के सान्निध्य में उदयपुर से 28 दिसंबर को ही तीन बसें व बारह कारें गिरनार यात्रा पर गई थी। यात्रा पूर्ण कर श्रद्धालु वहां से रवाना हो गए थे। प्रबलसागर जी महाराज सिद्धक्षेत्र गिरनार जी की यात्रा कर लौट रहे थे। पांचवी टोक पर युवक ने चाकू से उन पर हमला किया और घटनास्थल से भाग निकला। हालांकि हमलावर को पकड़ लिया गया है किन्तु इस घटना से सम्पूर्ण जैन समाज में रोष फैला हुआ है।