Monday, February 25, 2013

दिल्ली गैंग रेप घटनाक्रम



दिलवालों की दिल्ली के नाम से पुकारी जाने वाली दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 की सर्द रात को ऐसी शर्मसार घटना हुई जिसने सभी देशवासियों की धड़कनें तेज कर दी। 23 वर्षीय मासूम छात्रा के साथ छह दरिंदों ने दरिंदगी की सारी हदें पार कर दी। घटना की शिकार लड़की जिसे अमानत, दामिनी, निर्भया जैसे नामों से पुकारा गया, उसके लिए पूरे देशभर में आंदोलन खड़ा हो गया जिसने महिलाओं की सुरक्षा को लेकर नई बहस को जन्म दिया। सड़क से संसद तक इस घटना व आंदोलन की गूंज सुनाई दी। 

16 दिसंबर की रात की घटना पर सबसे पहले विस्तार से नजर डालते हैं। 23 वर्षीय छात्रा उस दिन अपने मित्र के साथ दक्षिण दिल्ली स्थित साकेत में ‘लाइफ ऑफ़ पाय’ फिल्म देख घर की ओर लौट रही थी। रात 9:30 बजे के करीब वह दोनों मुनिरका के बस स्टॉप पर पहुंचे जहां ऑटो चालकों ने उन्हें ले जाने से मना कर दिया और वह बस का इंतजार करने लगे। तभी सफेद रंग की एक अवैध चार्टर्ड बस उनके पास आकर रूकी और उनमें से एक लड़का कहने लगा कि वह बस द्वारका की ओर जा रही है। वह लड़का उस लड़की को ‘दीदी’ कहकर पुकार रहा था। बस में अन्य चार फर्जी पैसेंजर भी बैठे थे। लड़की और उसका दोस्त उस बस में सवार हो गए और उन्होंने 10-10 रूपए की टिकट भी खरीदी। बस जब अपने रूट से हटकर दूसरी तरफ जाने लगी तो लड़की के दोस्त को उन पर शक हुआ। उसने जब आपत्ति जताई तो वहां मौजूद सभी लोगों ने उन दोनों पर फब्तियां कसनी शुरू कर दी और कहने लगे कि वह दोनों इतनी रात को वहां क्या कर रहे थे। धीरे-धीरे दोनों पक्षों में बहस छिड़ गई और बस में सवार छह में से दो लोगों ने लड़की के दोस्त को लोहे की रोड से पीटना शुरू कर दिया और लड़की को घसीटते हुए पीछे वाली सीट पर ले गए और बारी-बारी उन सबने उसके साथ बलात्कार किया। उनमें से दो या तीन लोगों ने तो उसके साथ दो बार बलात्कार किया। लड़की ने बचाव में जब उनमें से तीन व्यक्तियों को दांतों से कांटा तो उन्होंने हैवानियत की सारी सीमाएं पार कर दी। उन्होंने एल-शेप का जंग खाया हुआ व्हील जैक उस लड़की के गुप्तांग में घुसाकर उसके अंतरंगों को बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया। पुलिस रिपोर्ट में बताए जा रहे नाबालिग बलात्कारी ने लड़की के साथ दो बार बलात्कार किया और अपने हाथ से उसकी आंत खींचकर बाहर निकाल दी। लड़की के दोस्त ने भी लड़की को बचाने की कोशिश की लेकिन उसके साथ उन दरिंदों ने बुरी तरह मारपीट की। आंखिकार उन दरिंदों ने दोनों को नग्न अवस्था में सड़क पर फेंक दिया। उन्होंने उस लड़की को बस से कुचलने की भी कोशिश की किन्तु उसके दोस्त ने उसे खींच लिया। 

दरिंदगी का यह खेल लगभग दो घंटों तक चलता रहा और उस दौरान उस लड़की की चीख किसी भी बाहरी व्यक्ति को नहीं सुनाई दी। एक निजी चैनल को दिए गए साक्षात्कार में लड़के ने बताया कि सड़क पर गुजरने वाले किसी भी व्यक्ति ने उनकी मदद नहीं की और वह काफी देर तक ऐसे ही सड़क पर पड़े कराहते रहें। एक व्यक्ति ने पुलिस को फोन कर उनके बारे में जानकारी दी और पुलिस पहुंचकर इस बात पर बहस करने लगी कि मामला किस थाने के अंतर्गत आता है। उनमें से किसी ने भी उन पर कपड़ा डालने की भी जरूरत नहीं समझी। कुछ देर बाद जब फैसला हो गया तो उन्हें पुलिस जीप में सफदरजंग अस्पताल ले जाया गया। जीप में भी लड़की को उठाकर उसके दोस्त ने ही रखा। अस्पताल पहुंचने पर चिकित्सकों ने उस लड़की को तुरन्त आपातकालीन चिकित्सा दी और उसे वेंटिलेटर पर रखा गया। चिकित्सकों ने पाया कि लड़की की केवल 5 प्रतिशत आंत ही बची है। 17 दिसंबर को लड़की की पहली सर्जरी हुई। वह लगातार गंभीर अवस्था में थी। 19 दिसंबर को दूसरी सर्जरी में इंफेक्शन के चलते लड़की की आंत निकाली गई। 21 दिसंबर को हालत में सुधार होने पर उसे वेंटिलेटर से हटाया गया किंतु 23 दिसंबर को बढ़ते इंफैक्शन को रोकने के लिए तीसरी सर्जरी की गई और फिर से वेंटिलेटर पर रखा गया। 25 दिसंबर की रात को उसे हार्ट अटैक आया जिससे उसके दिमाग को गंभीर क्षति पहुंची। चिकित्सकों का कहना था कि आंतरिक रक्त स्राव को तो नियंत्रित कर लिया गया है किंतु बिलिरूबीन स्तर में बढ़ोत्तरी के कारण लड़की की जान खतरे में है। मनमोहन सिंह द्वारा मंत्रिमंडल की बैठक में 26 दिसंबर को लड़की को ऑस्ट्रेलिया के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल में स्थानांतरित करने का निर्णय लिया गया जो बहु-अंग प्रत्यारोपण के लिए प्रमुख अस्पताल है। उसी दिन रात पौने बारह बजे लड़की को एयर एंबुलेंस के जरिए ऑस्ट्रेलिया ले जाया गया। 28 दिसंबर तक युवती के कई अहम अंगों ने काम करना बंद कर दिया और रात 2:15 बजे उसने अंतिम सांस ली। 

दरिंदगी का शिकार हुई वह लड़की जीना चाहती थी। सफदरजंग के चिकित्सकों ने कहा था कि इस तरह की दरिंदगी का मामला उन्होंने आज तक नहीं देखा। लेकिन वह उस लड़की की जीने की इच्छा देख हैरान थे। लड़की ने दो बार बयान भी दर्ज कराया और अस्पताल में उन दरिंदों के बारे में भी पूछा कि वह पकड़े गए या नहीं। माउंट एलिजाबेथ अस्पताल के चिकित्सक भी उसके जीने का जज्बा देखकर हैरान थे। उसने अस्पताल में कभी इशारों से तो कभी लिखकर बात भी की थी किन्तु इच्छाशक्ति के बावजूद भी उस लड़की ने प्राण त्याग दिए। 

कथित आरोपी
पुलिस ने घटना के 24 घंटों के दौरान सभी कथित आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। बस चालक राम सिंह और उसके भाई मुकेश सिंह को राजस्थान में गिरफ्तार किया गया, वहीं जिम इंस्ट्रक्टर विनय शर्मा और फल विक्रेता पवन गुप्ता को दिल्ली में ही गिरफ्तार किया गया। नाबालिग आरोपी, जिसके नाम का अभी तक खुलासा नहीं किया गया है लेकिन उसे राजू कहकर बुलाया जाता है, उसे आनंद विहार बस अड्डे से गिरफ्तार किया गया। छठे आरोपी अक्षय ठाकुर को बिहार में औरंगाबाद से गिरफ्तार किया गया। वह काम की तलाश में दिल्ली आया था। 

राजू ने पूछताछ में खुलासा किया कि ये सब उस दिन पार्टी कर रहे थे। राजू को रामसिंह से आठ हजार रूपये लेने थे। मुकेश ने राजू की बात रामसिंह से करवाई थी और उसने उसे दिल्ली बुला लिया था। 16 दिसंबर की रात को इन सबने चिकन खाया था व शराब के नशे में बस लेकर लड़की उठाने के लिए निकले थे। आरके पुरम के सेक्टर 5 के पास इन्होंने सफेइ चुन्नी ओढ़े एक युवती को भी उठाने का प्रयास किया था। किन्तु वहां एक व्यक्ति ने उस युवती को बचा लिया था। थोड़ा सा आगे चलने के बाद काले कपड़ों पहने एक युवती को भी उठाने का प्रयास किया था किन्तु मुकेश ने आगे बस चला दी और वह नहीं उठा सके। वसंत विहार इलाके में इन्होंने रामाधार को बस में बैठाकर उससे 8000 रूपये व मोबाइल छीन लिया। इसके बाद इन्होंने पीडि़ता व उसके दोस्त को बस में चढ़ाकर हैवानियत की सारी हदें पार कर दी। उनमें से एक पवन गुप्ता ने तो अपना जुर्म कबूलते हुए स्वयं को फांसी की सजा भी दे देने को कहा। 

अक्षय ठाकुर ने पूछताछ में बताया कि गैंगरेप के मुख्य आरोपी रामसिंह ने न केवल लड़की के साथ बलात्कार किया बल्कि वह अपने साथियों को हंसते हुए सबूत नष्ट करने के लिए दरिंदगी के तरीके के बारे में भी बता रहा था। लड़की के साथ गैंगरेप के बाद दंरिदगी रामसिंह ने की थी और लड़की को राजू और विनय ने काबू में कर रखा था। गैंगरेप के दोषियों में से किसी ने भी रामसिंह को रोकने की कोशिश नहीं की। 

19 दिसंबर को लड़की के दोस्त ने गवाही भी दी और 21 दिसंबर को पुलिस उपायुक्त की उपस्थिति में उपप्रभागीय मजिस्ट्रेट ने सफदरजंग अस्पताल में लड़की का बयान भी दर्ज किया। 

आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 365 (अपहरण), 376 जी (गैंग रेप), 377 (कुकर्म), 394 (लूटपाट), 395 (डकैती), 120 बी (आपराधिक षड्यंत्र), 396 (डकैती के दौरान हत्या), 201 (सबूत मिटाना) और धारा 34 (एक से ज्यादा वारदातों में शामिल होना) दर्ज की गई है।

उबल पड़ा जनाक्रोश
गैंगरेप के विरोध में 18 दिसंबर को लोग सड़कों पर उतर आए और दोषियों को कड़ी सजा दिलाने की मांग व लड़की की सलामती की दुआ करने लगे। देशभर में आंदोलनकारियों की संख्या दिन पर दिन बढ़ती चली गई। आंदोलन में महिलाओं ने भी बढ़-चढ़ कर गुस्सा दिखाया और महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा एक बार फिर सामने आया। इंडिया गेट, जंतर-मंजर, विजय चैक, मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के आवास और संसद के बाहर जैसे मुख्य स्थलों समेत कई जगहों पर प्रदर्शन हुआ जिसको रोकने के लिए सुरक्षा बलों को तैनात किया गया। प्रदर्शनकारियों पर कभी लाठियां बरसाई गई तो कभी आंसू गैस छोड़ी गई। हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए 375 आंसू गैस के सिलिंडरों का प्रयोग किया। कई महत्वपूर्ण मेट्रो स्टेशनों को भी बंद किया गया जिससे प्रदर्शनकारी गंतव्य तक न पहुंच पाए। प्रदर्शन के दौरान एक पुलिसकर्मी सुभाष तोमर की भी मौत हो गई। लड़की की मौत के बाद 29 दिसंबर को देशभर में लोगों ने कैंडल मार्च किया। गैंगरेप के विरोध में प्रदर्शनकारियों ने काले कपड़े पहने और कई प्रदर्शनकारियों ने मुंह पर काले रंग की पट्टी भी बांधी। लड़की की मौत की दुखद खबर को लेकर देशभर में नए साल का जश्न भी नहीं मनाया गया। भारत के सबसे सर्द दिनों में भी लोगों का गुस्सा कम नहीं हुआ और सड़कों पर उन्होंने जमकर प्रदर्शन किया। ‘वट्स ऐप’ मोबाइल एप्लीकेशन और फेसबुक, ट्विटर जैसी सोशल साइटों पर भी गैंगरेप का जमकर विरोध हुआ। कई लोगों ने विरोध जाहिर करते हुए अपने प्रोफाइल फोटो की जगह पर काले रंग की एक बिन्दू लगाई। 

देशभर में हुए प्रदर्शन का ही परिणाम था कि महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा गंभीर रूप से उठाया गया और सरकार ने भी महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए। रेप के मामलों का जल्दी निपटारा करने के लिए दिल्ली में पांच फास्ट ट्रैक कोर्ट की शुरूआत की गई जिसमें सबसे पहले लड़की के केस की सुनवाई शुरू की गई। इसके अलावा हरियाणा में भी 12 फास्ट ट्रैक कोर्ट की शुरूआत की गई है जिसमें केवल महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की कार्यवाही की जाएगी। इसके अलावा भारत के अन्य राज्यों में भी महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उपाए किए गए हैं।

कहां कैसी सजा
अमेरिका- बलात्कार के लिए अमेरिका के अधिकतर हिस्सों में उम्रकैद की सजा है। कुछ प्रांतों में बलात्कार के दोषी को केमिकल और सर्जिकल तरीके से नपुंसक बनाने का विकल्प भी मौजूद है। 
ग्रेट ब्रिटेन- यूके में रेप की सजा उम्रकैद है। 
रूस- हिंसा और बलात्कार के लिए यहां 4 से 10 साल तक की सजा दी जाती है। 
फ्रांस- यहां बलात्कार की अधिकतम सजा 20 साल की जेल है। 
ऑस्ट्रेलिया- यहां बलात्कार की सजा सात साल है। कुछ मामलों में दोषी की सजा को निलंबित भी किया जा चुका है। 
चेक गणराज्य- जो दोषी उम्रकैद जैसी मुश्किल सजा से बचना चाहते हैं, उनके पास नपुंसक बनकर जेल से बाहर जाने का विकल्प भी है। 
दक्षिण कोरिया- यहां बलात्कार की अधिकतम सजा 15 साल है। यहां बलात्कारी को नपुंसक बनाए जाने का विधेयक भी लंबित है। 

किसने क्या कहा
लड़की के दादा- मेरी पोती बहुत बहादुर थी और उसने आंखिर तक हार नहीं मानी। बिटिया की पढ़ाई पूरी हो गई थी और उसे 35 हजार तनख्वाह भी मिलनी शुरू हो गई थी। लेकिन बिटिया अब हमसे दूर जा चुकी है। हम बस यही चाहते हैं कि सरकार कुछ ऐसा करे कि हमारी पोती जैसी घटना किसी और लड़की के साथ न हो। 

लड़की के पिता- घटना के बारे में पहली बार मुझे 16 दिसंबर की रात सवा ग्यारह बजे पता चला था। हालांकि तब भी मुझे यह पता नहीं था कि मेरी बेटी के साथ वास्तव में क्या हुआ है। 16 दिसंबर को रात 10.30 बजे मैं काम से लौटा था। मेरी पत्नी बेटी को लेकर चिंतित थी, क्योंकि वह घर नहीं लौटी थी। हमने बेटी और उसके दोस्त के मोबाइल पर फोन किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। रात 11.15 बजे अस्पताल से फोन आया कि मेरी बेटी के साथ कोई हादसा हो गया है। अस्पताल में वह बिस्तर पर पड़ी थी। उसकी आंखें बंद थीं। मैंने उसके माथे पर हाथ फेरा और उसका नाम लेकर पुकारा। उसने आंखें खोलीं और रोना शुरू कर दिया। मैंने अपने आंसुओं पर काबू किया और उसे दिलासा देते हुए कहा कि सब ठीक हो जाएगा। तब तक मुझे असलियत मालूम नहीं थी। बाद में पुलिस ने असलियत बताई। इस जघन्य अपराध के लिए अपराधियों को फांसी की सजा मिलनी चाहिए। 

प्रणब मुखर्जी, राष्ट्रपति- वह एक बहादुर और साहसी लड़की थी, जो अपनी जिंदगी और अपने सम्मान के लिए आंखिरी सांस तक लड़ी। वह एक सच्ची नायक और भारतीय युवाओं व महिलाओं की सर्वश्रेष्ठ प्रतीक है। देश की बहादुर लड़की की मौत पर सारा राष्ट्र रो रहा है। 

मनमोहन सिंह, प्रधानमंत्री- भले ही वह जिंदगी की जंग हार गई हो लेकिन अब यह हमारी जिम्मेदारी है कि उसका बलिदान बेकार न जाने दें। युवा भारत के इस आक्रोश को पूरी तरह समझा जा सकता है। अगर हम इस ऊर्जा और भावनाओं का सकारात्मक प्रयोग कर सकें तो पीडि़त युवती को यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी। 

सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष- आज हम भारतीय को लग रहा है कि उसने अपनी बहन या बेटी को खो दिया। एक महिला व एक मां होने के नाते मैं इस दर्द को समझ सकती हूं। दिल इस दुख से भारी हो रहा है। लड़की का संघर्ष बेकार नहीं जाएगा। 

पी. चिदंबरम, वित मंत्री- चलती बस में हुई इस दरिंदगी की घटना ने पूरे जनमानस को हिला दिया है। यह शर्मनाक है। एक पुरूष होने के नाते मैं शर्मिंदा हूं। मर्द इस तरह का बर्ताव क्यों करते हैं? लोगों का गुस्सा जायज़ है। 

अरूण जेटली, भाजपा- आज हमारे सिर शर्म से झुक गए हैं। उसकी जिंदगी ऐसे माहौल की भेंट चढ़ गई जिसमें महिलाएं सुरक्षित नहीं है। हमें अब कानूनों में सुधार करना होगा और ऐसा वातावरण तैयार करना होगा जिसमें महिलाएं सम्मान के साथ रह सकें। 

ममता बनर्जी, मुख्यमंत्री, पश्चिम बंगाल- सारा देश सदमें मंे है, मैं भी। इसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। आईपीसी और सीआरपीसी के प्रावधान पुराने हो चुके हैं। सख्त कानून बनाए जाने की जरूरत है। 

सुषमा स्वराज, विपक्षी नेता- लड़की की मौत देश के लिए सदमा है। हमें और जागरूक होने की जरूरत है जिससे हम अपनी बेटियों को सुरक्षित भविष्य दे सकें। मैं दोषियों को फांसी दिए जाने की मांग फिर दोहराती हूं। 

शीला दीक्षित, मुख्यमंत्री, दिल्ली- हां मैं दुष्कर्मियों के लिए सजा-ए-मौत की पक्षधर हूं। हमें ऐसे कुकृत्य के लिए अपराधी के खिलाफ सख्त से सख्त सजा का प्रावधान करना चाहिए जिससे वह अपराधियों के लिए मिसाल बन सकें। 

सुशील कुमार शिंदे, गृहमंत्री- गैंगरेप जैसी घृणित वारदात दिल्ली में हुई। ऐसे दुर्लभतम मामलों में दोषियों को कड़ी सजा दिलाने के लिए कानून में संशोधन किया जाएगा। सरकार इसके लिए कटिबद्ध है। घटना की जांच के लिए न्यायिक आयोग का गठन किया जाएगा। यह आयोग महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उपाय भी सुझाएगा। इस पर जल्द से जल्द कार्रवाई होगी। 

मायावती, बसपा अध्यक्ष- बलात्कार की शिकार महिलाओं को आर्थिक मदद तथा नौकरी देने की भी व्यवस्था करनी चाहिए और दोषियों के लिए कड़ा से कड़ा कानून बनाया जाना चाहिए। 

किरण बेदी, सामाजिक कार्यकर्ता- आज बड़े शोक का दिन है। अपराधियों को सजा दिलाने का कानून पूरी तरह निष्क्रिय साबित हुआ। 

प्रकाश सिंह बादल, मुख्यमंत्री पंजाब- केंद्र को तत्काल कठोर कानून बनाने चाहिए। जिससे कि फिर कोई ऐसा सोचने की हिम्मत न जुटा सके। ऐसी सजा दी जानी चाहिए जो औरों के लिए उदाहरण बने। 

इरफान पठान, क्रिकेटर- ऐसी घटनाएं जब सामने आती है तो मन दुखी होता है। इस तरह की हैवानियत का अब अंत होना चाहिए। महिलाओं के खिलाफ रेप केस बढ़ते जा रहे हैं जिन पर रोक लगनी चाहिए। सरकार को अपराधियों के प्रति सख्त कदम उठाने होंगे। जिस तरह से आज आवाम सड़कों पर उतरी है, उसे देखते हुए सरकार को कठोर कानून बनाने की जरूरत है। अब समय आ गया है कि समाज के लोगों को मिलकर यह सोचना होगा कि इस तरह की घटनाएं क्यों हो रही हैं?

बॉलिवुड में भी शोक की लहर
लता मंगेश्कर- बस बहुत हो चुका। यह निर्भया या दामिनी की मौत नहीं है बल्कि देश में इंसानियत की मौत है। समय आ गया है सरकार गहरी नींद से जागे और इस जघन्य अपराध के लिए अपराधियों को कड़ी सजा दे। 

अमिताभ बच्चन- अमानत कहें या दामिनी, अब ये सिर्फ नाम हैं। उसके शरीर की मौत हो गई है। लेकिन उसकी आत्मा हमेशा हमारे दिलों को झकझोरती रहेगी। 

शाहरूख खान- मुझे खेद है कि मैं एक पुरूष हूं। वादा करता हूं कि मैं तुम्हारी लड़ाई लड़ूंगा। मैं महिलाओं का सम्मान करूंगा ताकि मुझे अपनी बेटी के लिए सम्मान हासिल हो सके। 

शबाना आजमी- हमारी नपुंसकता हमारे चेहरे पर साफ झलकती है। यह घटना हमारे देश को जगाने की वजह बन सकती है जिसकी हमें बेहद जरूरत है। 

जावेद अख्तर- गैंगरेप की पीडि़ता भले ही हमारे बीच नहीं है लेकिन उसकी मौत कई सवालों का जवाब मांग रही है। 

मनोज वाजपेयी- उसकी मौत से देश में कई मौते हुई हैं। उसकी आत्मा को शांति मिल पाएगी। समूचे देश के लिए यह अवसाद का क्षण है। 

अक्षय कुमार- हमारी फाइटर जिंदगी की जंग हार गई। उसकी गलती सिर्फ इतनी थी कि वह सुरक्षित मानी जाने वाली राष्ट्रीय राजधानी की सड़कों पर रात में घूम रही थी। देश सही मायनों में तभी आजाद होगा जब महिलाएं रात में सड़कों पर आजादी से बिना डर के घूम सकेंगी। 
शेखर कपूर- उसकी कुर्बानी हम भूल गए तो यह विश्वासघात होगा। सत्ताधारियों को उम्मीद होगी कि हम उसे भूल जाएंगे, किंतु यदि हम भूल गए तो वाकई यह एक विडंबना होगी। 
अनुपम खेर- यह तो मानवता की हत्या है। यह गैंगरेप पीडि़ता से ज्यादा घटिया व्यवस्था की मौत है। 

विवादास्पद बयान
आसाराम बापू- बालात्कार का शिकार हुई बिटिया भी उतनी ही दोषी है। वह दोषियों को भाई कहकर पुकार सकती थी। इससे उसकी इज्जत और जान भी बच सकती थी। क्या ताली एक हाथ से बज सकती है, मुझे तो ऐसा नहीं लगता। 

अभिजीत मुखर्जी, कांग्रेस सांसद और राष्ट्रपति के पुत्र- छात्राओं के नाम पर रैलियों में डेंटेड-पेंटेड महिलाएं पहुंच रही हैं। दिल्ली में जो हो रहा है वो गुलाबी क्रांति है, जिसका जमीनी हकीकत से कोई लेना-देना नहीं है। पहले ये महिलाएं कैंडल लेकर जुलूस निकालती हैं और फिर शाम को डिस्कोथेक में जाती हैं। 

संजय निरूपम, कांग्रेस सांसद- चार दिन हुए नहीं और आप राजनीतिक विश्लेषक बनती फिर रही हैं। आप तो टीवी पर ठुमके लगाती थीं। 

डॉ अनीता शुक्ला, कृषि वैज्ञानिक- छह लोगों से घिरने के बाद यदि युवती आत्मसमर्पण कर देती तो उसकी आंतें निकालने की नौबत नहीं आती। देर रात युवती को अपने बॉयफ्रेंड के साथ घूमने की क्या जरूरत थी।

अनीसुर रहमान, माकपा नेता- पश्चिम बंगाल का रवैया रेप पीडि़तों के लिए ठीक नहीं। मैं ममता बनर्जी से पूछना चाहता हूं कि वे रेप के लिए कितना चार्ज लेंगी। 

Monday, January 28, 2013

आखिर कब तक?



दिलवालों की दिल्ली नाम से पुकारी जाने वाली राजधानी में 16 दिसंबर की रात को ऐसी शर्मसार घटना हुई कि सभी देशवासियों की धड़कनें तेज हो गई। 23 वर्ष की एक मासूम छात्रा का चलती बस में सामूहिक बलात्कार किया गया और उसको व उसके दोस्त को इन दरिंदों ने बड़ी बेरहमी से पीटकर सर्द रात में अर्धनग्न अवस्था में सड़क पर फेंक दिया। अगले दिन जब इस घटना का सारे देश को पता चला तो वह इस घटना को सुनकर ही कांप उठे और देशभर में आंदोलन खड़ा हो गया। किन्तु महिलाओं को अपनी जागीर समझने वाले इन दरिंदों का हौसला कम होने के बजाए बढ़ता चला गया। महिलाओं की सुरक्षा को लेकर एक तरफ आंदोलन चल रहा था तो वहीं दूसरी तरफ अन्य और अधिक बलात्कार की खबरें सामने आई। देखते ही देखते ये दिलवालों की दिल्ली दरिंदों की दिल्ली में तब्दील हो गई। आज आलम यह है कि दिल्ली में लड़कियां घर से बाहर कदम रखने में भी घबरा रही हैं। क्या पता ये दरिंदे किस रूप में उनके सामने आ जाए? यह दरिंदे केवल दिल्ली में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में फैले हुए हैं। कुछ तो अपने पद का ही दुरूपयोग कर महिलाओं के साथ दुष्कर्म करते हैं। 16 दिसंबर की रात लड़की के साथ जो हुआ उस पर बुद्धिजीवियों ने भी अपने विचार रखने शुरू किए। किसी ने महिलाओं को घर में रहने की नसीहत दी तो किसी ने उस लड़की पर सारा दोश मढ़ दिया। किसी ने महिलाओं के मेकअप को इसका जिम्मेदार माना,तो किसी ने भारतीय संस्कृति की दुहाई देनी शुरू कर दी। इन सबके बीच किसी ने भी यह समझने और महसूस करने की जरूरत नहीं समझी कि यह सब सुनकर उसके परिवार वालों पर क्या बीती होगी? जो देश की महत्वाकांक्षी महिलाएं हैं उनके मनोबल पर क्या प्रभाव पड़ा होगा? क्या यही हमारे समाज के खुले विचार हैं? कब तक भारतीय संस्कृति की दुहाई देकर महिलाओं को दबाने की और पुरूषों की कठपुतली बनाने की कोशिश की जाती रहेगी? एक बार एक एसएमएस पढ़ा था कि अगर तुमसे कोई गलती हो जाए तो यह सोचो कि इसका दोष किस पर मढ़ना है। उस समय यह हास्यास्पद लगा किंतु आज इसके असली मायने समझ आते हैं। समाज में कोई भी अपनी गलती स्वीकार न करके बस दूसरों को ही ढूंढते हैं जिस पर दोष मढ़ा जाए। चंद लोग इकट्ठा होकर आपस में बतियाते हैं और यह दिखाने का प्रयास करते हैं कि वह इसके प्रति कितने गंभीर है, किंतु असल स्थिति तो यह है कि रास्ते में अगर किसी महिला के साथ छेड़छाड़ हो भी तो वह चुपचाप देखते रहते हैं। यहां इस प्रसंग में हालिया उदाहरण है। एक 16 वर्ष की लड़की के साथ शराब पीकर एक कंडक्टर ने छेड़छाड़ शुरू की तो ड्राइवर ने उसे नजरंदाज करना बेहतर समझा और एक कंडक्टर ने इसे रोकने की कोशिश की तो शराबी कंडक्टर ने उसे धमकी दी और वह विरोध जताने वाला कंडक्टर वापिस पीछे जाकर बैठ गया। छेड़डाड़ का सिलसिला यूंही चलता रहा। आंखिरकार पुलिस की बस पर नजर पड़ गयी तो उस लड़की को बचा लिया गया। लेकिन जिस दरिंदगी से पुलिस ने उसे बचाया था वह पिछले छह महीनों से उस दरिंदगी को झेल रही थी। उसका अपना ही भाई छह महीनों से उसका बलात्कार कर रहा था जिससे बचकर वह अनाथ आश्रम जा रही थी। भारत देश में एक ओर जहां कन्याओं को देवी मां के रूप में पूजा जाता है व उनके हाथ से किसी कार्य की शुरूआत को शुभ माना जाता है, वहीं दूसरी ओर इन पर गलत नजर डालने वालों की भी कमी नहीं है। महिलाओं के साथ बलात्कार के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है।
राष्ट्रीय अपराध रिकाॅर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2011 में बलात्कार के 24,206 मामले सामने आए। यह आंकड़ा पुलिस थानों पर दर्ज एफआईआर पर आधारित है। इसका औसत देखा जाए तो भारत में प्रतिदिन लगभग 67 बलात्कार होते हैं। बलात्कार के मामले इससे भी ज्यादा हो सकते हैं क्योंकि परिवार की इज्जत व अन्य कारणों से कई घटनाएं दबा दी जाती हैं। हाल ही में एक पंचायत ने ही एक महिला के साथ सामूहिक दुष्कर्म करने वालों को यह कहकर माफ कर दिया कि इससे परिवार व उनके समूह की इज्जत खराब होगी। आंखिर अपनी ही महिलाओं पर हो रहे दुष्कर्म पर चुप्पी साधने वालों की भला क्या इज्जत होगी? क्या उन पंचों ने यह फैसला देते हुए उस लड़की की हालत के बारे में सोचा होगा? इन पंचायतों की स्थापना सरकार की विकास नीतियों को गांव-गांव में पहुंचाने के लिए की गई थी, न कि उन्हें इस तरह के फैसले या फरमान सुनाने का अधिकार दिया गया था। भारत में महिलाओं के खिलाफ बलात्कार के अलावा भी कई अत्याचार होते हैं जिनमें छेड़छाड,़ घरेलू हिंसा, उपेक्षा आदि शामिल हैं। आंखिर कब तक महिलाएं ये सब झेलती रहेंगी? कब तक उन्हें इसी तरह दबाया जाता रहेगा? कब तक उन्हें इन दरिंदों का इसी तरह शिकार होना पड़ेगा? कब तक मनचलों की हरकतों को नजरंदाज करना होगा? उनके साथ हुए इन सब अत्याचारों के पीछे क्या केवल वही दोषी हैं? क्या समाज, पुलिस सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं हैं? इन प्रश्नों का हल बहुत जरूरी है क्योंकि भारत में रहने वाली आधी आबादी की आबरू आज खतरे में है। इस समस्या को हल करने के लिए सभी को अपनी जिम्मेदारियों को समझना होगा।
पुलिस की जिम्मेदारी
पुलिस को इन घटनाओं को रोकने के लिए अपराधियों को जल्द से जल्द पकड़कर कार्रवाई करनी चाहिए और बलात्कार पीडि़ता से सभ्य सवाल पूंछने चाहिए। हाल ही में एक बलात्कार पीडि़त महिला ने पुलिस के सवालों से परेशान होकर ही आत्महत्या कर ली थी। पुलिस थानों में अधिक से अधिक महिला काॅन्सटेबलों को नियुक्त करने का फैसला सकारात्मक है।साथ ही हर उस स्थान पर जहां महिलाओं का आवागमन होता है जैसे महिला कालेजों, आफिसों आदि पर महिला पुलिस की तेनाती आवश्यक है।
कानून में बदलाव
सरकार को बलात्कार के खिलाफ कानूनों को और कड़ा करना चाहिए ताकि दरिंदों में कानून का डर बना रहे। कई देश ऐसे हैं जहां बलात्कारी को दोषसिद्धि होने पर तुरन्त मौत की सजा दे दी जाती है किन्तु भारत में इंसाफ मांगते-मांगते ही कई वर्षों का समय बीत जाता है। भारत में बलात्कार की दोषसिद्धि होने पर कड़ी सजा का प्रावधान करना चाहिए।
समाज की जिम्मेदारी
समाज को भी महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों पर चुप नहीं बैठना चाहिए। रास्ते में किसी महिला के साथ कोई अभद्र व्यवहार करे तो उस पर जरूर आवाज उठानी चाहिए और महिलाओं को पूरा सम्मान दिया जाना चाहिए।
स्वयं महिलाओं की जिम्मेदारी
महिलाओं को अपनी रक्षा के लिए कुछ उपाय अवश्य करने चाहिए। उन्हें ऐसे किसी भी यातायात में नहीं बैठना चाहिए जिसके पास सवारी ले जाने का परमिट न हो। किसी पर जरा सा भी संदेह होने पर चुप्पी न साधकर शोर मचाना चाहिए और पुलिस को इसकी जानकारी देनी चाहिए। सुनसान इलाकों में जाने से बचना चाहिए और रात को घर से तभी बाहर निकलना चाहिए जब उनके परिवारजन या परिचित साथ हो।
आज यदि हम महिलाओं की सुरक्षा के प्रति एक कदम बढ़ाएंगे तो समाज में धीरे-धीरे एक अनुकूल वातावरण का निर्माण होगा।

Wednesday, January 2, 2013

जैन मुनि प्रबलसागर जी महाराज पर जानलेवा हमला



गुजरात स्थित सिद्धक्षेत्र गिरनार जी की पांचवी टोक पर मंगलवार को स्थानीय पंडो ने दिगम्बर जैन मुनि श्री प्रबल सागर जी महाराज पर जानलेवा हमला कर दिया। 
प्राप्त जानकारी के अनुसार साधुवेशधारी एक युवक ने प्रबल सागर जी महाराज (शिष्य आचार्य श्री पुष्पदंत सागर जी महाराज) पर चाकू से पांच बार वार किया जिससे वह वहीं बेहोश हो गए। वहां मौजूद श्रद्धालुओं ने महाराज जी को बेहोशावस्था में ही एक स्थानीय निजी अस्पताल में भर्ती कराया। अत्यधिक रक्त स्राव के कारण उनकी हालत गंभीर बनी हुई थी जिसके कारण उनकी दीक्षा विच्छेद कराकर तुरन्त इलाज कराया गया। इस समय उनकी हालत स्थिर बताई जा रही है। 

बताते चलें कि प्रबलसागर जी महाराज के सान्निध्य में उदयपुर से 28 दिसंबर को ही तीन बसें व बारह कारें गिरनार यात्रा पर गई थी। यात्रा पूर्ण कर श्रद्धालु वहां से रवाना हो गए थे। प्रबलसागर जी महाराज सिद्धक्षेत्र गिरनार जी की यात्रा कर लौट रहे थे। पांचवी टोक पर युवक ने चाकू से उन पर हमला किया और घटनास्थल से भाग निकला। हालांकि हमलावर को पकड़ लिया गया है किन्तु इस घटना से सम्पूर्ण जैन समाज में रोष फैला हुआ है।