Monday, December 15, 2014

महिलाओं को लेकर ये दोगुलापन किस बात का?




16 दिसंबर 2012 का मनहूस दिन, इसी दिन दिल्ली में निर्भया के साथ एक अमानवीय घटना घटित हुई थी जिसने मानवता को शर्मसार कर दिया था। इस घटना ने एक बार फिर से महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा एक बार फिर सामने ला दिया। 16 दिसंबर तब था तब चारों ओर लोगों के अंदर गुस्सा था और समाज का प्रत्येक व्यक्ति केवल उस लड़की को इंसाफ दिलाने को उत्सुक था, वही 16 दिसंबर आज है, किन्तु 2014, जहां समाज के कुछ व्यक्ति ठेकेदार की भूमिका में सामने निकलकर आ रहे हैं और स्वयं को अति बुद्धिजीवीश्रेणी में दिखाकर रेप के कारणों के लिए महिलाओं को जिम्मेदार ठहराने से नहीं चूक रहे और लगे हाथ अपनी सलाह देकर स्वयं को जागरूक दिखाने की कोशिश कर रहे हैं।
अब जरा कुछ सवालों के जवाब तलाशते हैं। निर्भया कांड के बाद सुरक्षा के कितने इंतजाम हुए हैं? रेप मामालों में कमी आई है या बढ़ोत्तरी? किसी भी महिला के साथ छेड़छाड़ जैसी घटना होने पर भी समाज के ये ठेकेदार लोग क्यों नपुंसक बनकर देखते रहते हैं? और फिर ठेकेदारी करने से क्यों नहीं चूकते? किसी भी महिला के साथ अमानवीय घटना होने पर कितने लोग इंसाफ की गुहार लगाते हैं?
शायद इन सबका जवाब हम सभी जानते हैं। रेप के पीछे कुछ तथाकथिक बुद्धिजीवियों की राय है कि यह महिलाओं के आधुनिक होने के कारण हो रहा है। उनके कपड़े, उनकी नौकरी, उनका बाहर रहना या किसी दोस्त अथवा सहेली मिलना इत्यादि। उन्हीं लोगों से एक सवाल यह भी है कि वो इतना गौर से केवल यही देखते हैं कि किसी महिला ने कितने छोटे कपड़े पहने हैं या वह रात को किसके साथ अथवा कितने बजे हैं? वो इतनी रात को बाहर क्या कर रहे हैं क्योंकि महिलाओं को बचाने का मामला तो आज तक नहीं सुनाई दिया? अब यहां महिलाओं को घूर वो रहे हैं या कोई और? तो क्या ये भी अपराध की श्रेणी में नहीं है? या फिर महिलाओं का पुरूषों को भी पीछे छोड़ना उन्हें रास नहीं आ रहा और जलन में वह कह रहे हैं कि ‘‘जो हो रहा है अच्छा हो रहा है। अपनी बेडि़यों को तोड़ने की इन्हें यही सजा मिलनी चाहिए।’’
आज सबसे ज्यादा लफ्फाजी महिलाओं के कपड़ों को लेकर होती हैं कि यह उकसाने का काम करते हैं। अब यहीं सवाल यह भी आता है कि रेप कि शिकार लड़कियों में से कितनों के बारे में आपने सुना है कि उन्होंने कपड़े ऐसे पहने थे या उन बच्चियों का क्या जिनकी मासूमियत को तार तार करने से भी ये रेपिस्ट बाज नहीं आते। वहीं पुरुषों की ओर ध्यान दे तो जगह जगह खुले में सबके सामने शौच करने पर उन पर प्रश्न क्यों नहीं उठता? तब समाज के ये ठेकेदार क्यों चुप रहते हैं?
आज जब हम आधुनिकता की ओर बढ़ रहे हैं, वहीं महिलाओं को लेकर आज भी दकियानूसी विचारधारा रास नहीं आती। जब लोग रात को पब या डिस्क जैसी जगह पर अपनी महिला मित्रों के साथ नाचते नजर आते हैं तो वह आधुनिकता की चादर ओढ़ लेते हैं लेकिन जब बात आती है उनकी पत्नी अथवा बहनों की तो क्यों सभ्यता, भारतीयता जैसी बातों का पाठ पढ़ाया जाता है? महिलाओं को लेकर ये दोगुलापन किस बात का?

मैं यहां आप लोगों को कोई सलाह नहीं देना चाहती कि सुरक्षा के कड़े इंतजाम हो या कुछ और। बस इन अति बुद्धिजीवियोंआधुनिक कम दकियानूसीपुरूषों से ये जरूर कहना चाहती हूं कि एक बार स्वयं को महिलाओं के स्थान पर रखकर जरूर सोचे कि वह किन परिस्थितियों का सामना करके अपने वजूद को बनाती व बचाती है और जिंदगी के हर कदम पर अपनी जिम्मेदारियों (जैसे विवाह के समय माता-पिता से दूर, बच्चों को जन्म देना, उन्हें पालना-पोसना व अन्य कई जिम्मेदारियां) को कैसे निभाती हैं।

Sunday, November 2, 2014

स्थायी विकास के लिए संसाधन प्रबंधन एक आवश्यक शर्त


जैन चिंतन केवल आध्यामिक अभिव्यक्ति ही नहीं है, अपितु इसमें देश की समस्त समस्याओं का भी समाधान मौजूद है। आज देश के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती स्थायी विकास की है जो संसाधनों के बेहतर प्रबंधन के बिना संभव ही नहीं है। इसी गंभीर विषय को लेकर दिल्ली के छतरपुर स्थित जैन साधना केन्द्र में 1 व 2 नवम्बर को संसाधन प्रबंधन में नैतिकता एवं मूल्यों का समावेशविषय पर दो दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया जिसमें विद्वजनों ने हिस्सा लिया।
सेमिनार में मौजूद सरकार के आर्थिक मामलों के सलाहकार एमसी सिंघी ने भगवान महावीर के आर्थिक दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया । उन्होंने बताया कि महावीर स्वामी के अनुसार आर्थिक रूप से सक्षम तभी बना जा सकता है जब संसाधनों का बेहतर प्रबंधन हो। आज अनावश्यक आवश्यकता बढ़ने के कारण संसाधनों का भी तीव्र गति से दोहन हो रहा है। इसे रोकने के लिए समाज को आत्मसंयम के लिए प्रोत्साहित करना होगा। आज अमीर और गरीब का जो भेदभाव है उसके पीछे कारण संसाधनों का अनुचित बंटवारा एवं गलत प्राथमिकताओं को अपनाना हैं। भगवान महावीर के अनुसार उत्पादन उपभोक्ता केन्द्रित होना चाहिए और उपभोग की भी सीमा का निर्धारण होना चाहिए। भगवान महावीर अनावश्यक हथियारों के निर्माण, युद्ध प्रशिक्षण एवं खनन अथवा जंगल को नुकसान पहुंचाने वाली अन्य गतिविधियों के भी विरोध में थे। श्री सिंघी ने बताया के विकास चार खम्भों पर टिका होना चाहिए जो आर्थिक समृद्धि, प्रकृति के प्रति उदारता, नैतिक मूल्यों के प्रति सचेत और आपसी सम्मान हैं।
एक अन्य सेशन में इथियोपिया की राजदूत जेनेट जेविडे ने बताया कि उनका देश पिछले कुछ सालों में तरक्की कर पाया है क्योंकि उनकी नीतियां सही थी। जेविडे के अनुसार अमीर एवं गरीब के बीच की खाई को पाटना बहुत आवश्यक है। सरकार को देश में सड़क, अस्पताल, विद्यालयों, यातायात एवं कृषि की बेहतर व्यवस्था करानी चाहिए तभी देश का स्थायी विकास संभव है। जेविडे के अनुसार सब कुछ निजी हाथों में नहीं जाना चाहिए, इसमें सरकार को भी हस्तक्षेप करना चाहिए और जनता को भागीदारी करनी चाहिए। कार्यक्रम में मौजूद बोस्निया एवं हेर्जेगोविना के राजदूत डॉ. सबीत सुबासिक ने भी माना कि स्थायी विकास के लिए अमीर और गरीब के बीच की खाई को पाटना बहुत आवश्यक है।
होली-सी अपोस्तोलिक नानश्यचर के राजदूत एवं पोप के साथ रह चुके साल्वेटर पिनाकिया ने स्थायी विकास के लिए नैतिक मूल्यों के समावेश एवं सामाजिक सद्भाव पर बल दिया। उन्होंने स्थायी विकास को हासिल करने कि लिए सार्वजनिक, निजी एवं सरकारी क्षेत्रों के एक होने की बात कही।

कार्यक्रम में बोलिविया के राजदूत जॉज र्कार्डेनस रोबल्स, भारत के पूर्व चुनाव आयुक्त डॉ. जीवीजी कृष्णमूर्ति, सीबीआई के पूर्व निदेशक जोगिन्दर सिंह जैसे कई विद्वान जन उपस्थित थे।

Friday, August 22, 2014

समाज को फिल्मों के आइने में उतारने का घटिया प्रयास


आमिर खान के रेडियो वाले पोस्टर की चारों तरफ से आलोचना हो रही है। इससे पहले भी कई सारी फिल्मों में आपत्तिजनक दृश्यों अथवा चित्रों के चलते विरोध हो चुके हैं। सिनेमा का स्तर इतना गिर गया है कि उसमें एक्शन, थ्रिल, आर्ट, रोमांस आदि जैसे गुण तो रह ही नहीं गए हैं, रह गए हैं तो सिर्फ लव, सेक्स, धोखा, शराब, सिगरेट, पब आदि। वहीं कलाकारों के मामले में भी प्रतिभा के बजाए एक्सपोजर को ही अधिक तवज्जो दी जा रही है। इससे भारतीय समाज को दूषित करने का प्रयास किया जा रहा है। आंखिर क्यों भारतीय फिल्मों का स्तर इतना गिर रहा है? क्या इसके पीछे भी कोई षड्यंत्र है?


एक जमाना था जब नायक, नायिकाओं और खलनायकों का अपना अंदाज हुआ करता था। देवानंद की यूडलेइंगआते ही थियेटर में शोर होता था और उनके सामने आने पर लड़कियां बेहोश हो जाया करती थी। राजकुमार जैसे कलाकार की अदाकारी व संवादों में एक एटीट्यूडथा जिसे आज के हास्य कलाकार अकड़ूके नाम से पुकारते हैं। संजीव कुमार को संजीदा नायक की श्रेणी में रखा गया, वहीं बात करें शम्मी कपूर की तो एक जंगलीमिजाज वाला कलाकार याद आता है। राजेश खन्ना के हंसमुख मिजाज से कौन वाकिफ नहीं है। आनंद फिल्म में जिस तरह हंसते हंसते उन्होंने इतना गंभीर रोल किया वह सदा के लिए अमर है। वहीं भारतीय सिनेमा के चॉकलेटीनायक ऋषि कपूर के आते ही रोमांटिक फिल्मों का बाजार गरमाने लगा।
भारत की नायिकाओं में भी एक मासूमियत के साथ ही उनकी अदाकारी का एक अलग अंदाज था। नर्गिस की खूबसूरती के तो विश्वभर में दिवाने थे। शर्मिला टैगोर के शर्मीले अंदाज से तो सभी वाकिफ है, दूसरी ओर हेलेन की सिर्फ एक झलक देखने के लिए सिनेमा हॉल पूरी तरह से भर जाया करते थे। उनके जैसा नृत्य किसी अन्य अदाकारा में नहीं देखा जा सकता। ड्रीम गर्ल के आते ही भारतीय युवाओं ने भी सपने देखने शुरू कर दिए। डिंपल कपाडि़या के सेक्सी अंदाज से तो सभी घायल थे किन्तु उन्होंने इस अंदाज में भी कभी अश्लीलता को पार नहीं किया।
भारतीय सिनेमा की पटकथा और संवादों पर भी काम किया जाता है। सभी फिल्मों में भारतीयता की संपूर्ण झलक देखी जा सकती थी। कहते भी हैं कि फिल्में समाज का आइना होती हैं और बीसवीं सदी तक भारतीय फिल्मों पर भी यह बात पूरी तरह से लागू होती थी। भारतीय गांव, रीति-रिवाज, विवाह, रिश्तें, भारतीय नारी, भारतीय पुरूष आदि सभी का समावेश होता था और साथ ही खेतों व वादियों में फिल्माये गए गाने तो फिल्मों की जान हुआ करते थे।
उस समय एक्शन, थ्रिल, आर्ट, रोमांस आदि सभी प्रकार की फिल्में बनती थी किन्तु आज भारतीय सिनेमा का स्तर इतना गिर गया है कि उसमें एक्शन, थ्रिल, आर्ट, रोमांटिक आदि जैसे गुण तो रह ही नहीं गए हैं, रह गए हैं तो सिर्फ लव, सेक्स, धोखा, शराब, सिगरेट, पब आदि। भारतीय सिनेमा इतने पतन की ओर चला जाएगा, इसका अंदाजा किसी को भी नहीं था। आज के नायक नायिकाओं की अदाकारी में याद रखने जैसा कुछ नहीं है। शायद सभी अच्छे कलाकारों ने अपने आप को थियेटर तक ही सीमित कर दिया है और फिल्मों में केवल जुगाड़वाले ही कलाकार पहुंच रहे हैं।
पहले बनने वाली फिल्में समाज का आइना हुआ करती थी किन्तु आज समाज को जबरदस्ती फिल्मों का आइना बनाने पर जोर दिया जा रहा है, अर्थात् भारतीय संस्कृति व समाज को दूषित करने के पुरजोेर प्रयास हो रहे हैं। भारत की युवा पीढ़ी को अश्लीलता का पाठ पढ़ाया जा रहा है और जो जरा बहुत शील भी बचता है उसे पिछड़ाहुआ कहकर दुत्कारने का प्रयास किया जाता है। शराब जो पहले चोरी छिप्पे से बिकती थी आज माॅलों की शान बन रही हैं और यह सब केवल भारतीय सिनेमा की ही देन है। आंखिर ऐसा क्यों हो रहा है? कहीं विदेशी ताकतें ही भारत की युवा पीढ़ी को बर्बाद करने का प्रयास तो नहीं कर रही? हर बात में पश्चिमी सभ्यता को अपनाने का जो दौर चल पड़ा है उसमें समाज पर इसके प्रभाव का आंकलन सबकी नजरों में बेइमानी नजर आ रहा है। लेकिन क्या पश्चिमी सभ्यता को अपनाने का मतलब केवल शराब, सिगरेट या अश्लीलता को अपनाना ही है? यदि अंग्रेजी सिनेमा की ओर गौर करे तो उसमें में अश्लीलता जैसा कुछ नहीं है। वह अपनी फिल्मों के कंसेप्ट में पूरी मेहनत करते हैं और शानदार फिल्मों का निर्माण करते हैं। भारतीय सिनेमा क्यों उनसे यह सब नहीं सीख रहा है? या उसे वही सब दिखाने के लिए विवश किया जा रहा है?

भारत में हो रहे अपराध एवं बलात्कार की बात करें तो उसके पीछे भी कुछ हद तक सिनेमा ही जिम्मेदार है। भारत का समाज आज की फिल्मों जैसा तो है नहीं, वह तो अभी भी बहुत पिछड़ा हुआ है। आज भी भारत की बड़ी आबादी अनपढ़ और दोयम दर्जे का जीवन जीने को मजबूर है। उसके आसपास खुलेपन जैसा कुछ नहीं है। ऐसे में जब पर्दे पर आधे-अधूरे कपड़़ों में संवेदनशील दृश्यों को दिखाया जाता है तो इससे उत्कंठा का जन्म होता है और इसका शिकार अदाकारा नहीं बल्कि आम लड़की होती है जिसके आसपास सुरक्षा गार्ड तो दूर की बात है, उसकी आवाज तक सुनने वाला कोई नहीं होता।
आज सिनेमा पर रिश्तों को भी बदनाम करने की कोशिशें चल रही हैं। पहले की फिल्मों में जहां माता-पिता, भाई-बहन के रिश्तें और एक स्त्री के प्रति समाज की जिम्मेदारी स्पष्ट झलकती थी वहीं आज फिल्मों में केवल गर्लफ्रेंड-बॉयफ्रेंड का ही रिश्ता बचा है मानो युवा पीढ़ी को आशिक बनाने का ही जिम्मा इन्होंने उठा लिया हो। आज की फिल्मों पर गौर करें तो एक षड्यंत्र और स्पष्ट हो जाएगा और वह है लव जिहाद। अधिकतर फिल्मों में मुस्लिम लड़कों को हिन्दू लड़कियों के साथ रोमांस करते दिखाया जा रहा है जिसका समाज पर भी गहरा प्रभाव पड़ रहा है।

उपरोक्त बातों को परखने के लिए अपने आसपास के वातावरण पर गौर करेंगे तो माजरा समझ में आ जाएगा। कहा जाता है कि फिल्मों में केवल वही परोसा जाता है जो समाज मांग होती है किन्तु हमारे पास देखने के लिए आज विकल्प ही कहां है? सब ओर केवल दूषित मानसिकता ही नजर आती है। सिनेमा को इस दौर से निकालना अत्यंत आवश्यक है और इसके लिए सबको मिलकर प्रयास करना होगा। आज जैसी फिल्में बन रही हैं उनका विरोध करना होगा।

Tuesday, July 1, 2014

महिला स्वावलंबन में सेवा इंटरनेशल की पहल


भारत की 70 प्रतिशत आबादी गांवों में बसती है। गांवों में ही भारत का अस्तित्व बसता है किंतु इसके बावजूद भी भारतीय गांव का विकास शहरों के सामने फीका पड़ा हुआ है। गांवों की उपेक्षा हमेशा से की जाती रही है। विकास के नाम पर वहां बहुत कम योजनाएं हैं। युवाओं के लिए अवसरों में कमी है। और जब बात आती है महिलाओं की तो उनके लिए योजनाएं न के बराबर ही हैं। उनके उत्थान के लिए कोई सरकार कोई एनजीओ गांव में काम करने के लिए तैयार नहीं है। यह सरकार और एनजीओ केवल शहर की महिलाओं के लिए ही कार्य कर रहे हैं। ऐसे में सुदूर गांवों की महिलाएं अपने समग्र विकास से वंचित हैं और अपना पूरा जीवन मजबूरी के चलते अंधकार में जीने को विवश हैं।
सुदूर गांवों की महिलाओं की इसी स्थिति को ध्यान में रखते हुए उनके उत्थान के लिए सेवा इंटरनेशनल ने कुछ कार्यक्रम चलाए हैं। यह कार्यक्रम महिलाओं को प्रशिक्षित कर उनके स्वालंबन में कारगर सिद्ध हा रहे हैं। सेवा इंटरनेशनल की यह गतिविधियां उत्तराखंड, गुजरात, उड़ीसा, असम और कर्नाटक में चल रही हैं। सभी कार्यक्रम क्षेत्र विशेष की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए चलाए जा रहे हैं। 
सेवा इंटरनेशल का सबसे बड़े स्तर पर कार्यक्रम उत्तराखंड में चल रहा है। पिछले वर्ष वहां आई त्रासदी ने सबकुछ तहस नहस कर दिया। कई एनजीओ वहां पुनर्वास के लिए आई किंतु आते के साथ ही वहां से चली भी गई। किसी ने भी वहां टिककर कार्य नहीं किया। किंतु सेवा इंटरनेशनल वहां कई महीनों से कार्य कर रही है। यह कार्यक्रम रूद्रप्रयाग और चमोली के सुदूर गांवों में चलाए जा रहे हैं। सेवा इंटरनेशनल के कार्यकर्ता मीलों पैदल चलकर इन क्षेत्रों में पहुंचते हैं और लोगों की मदद करते हैं। इन क्षेत्रों की सबसे खास बात यह है कि वहां कृषि महिलाओं द्वारा की जाती है। सभी परिवारों की अर्थव्यवस्था महिलाओं से ही चलती है। किंतु वहां की भूमि कृषि के अनुकूल होने के बावजूद भी महिलाओं में कृषि के प्रशिक्षण की कमी के कारण उन्हें अधिक लाभ नहीं मिल पाता है। इसी स्थिति को ध्यान में रखते हुए सेवा इंटरनेशनल ने वहां महिलाओं को कृषि की आधुनिक तकनीकी सिखाने का जिम्मा लिया है। वह उन्हें प्रशिक्षण के साथ ही उन्नत बीज भी उपलब्ध करा रहा है। उत्तराखंड में सेवा इंटरनेशनल महिलाओं के आर्थिक स्वावलंबन के लिए कृषि के आलावा कम्प्यूटर प्रशिक्षण और एवं कढ़ाई बुनाई का प्रशिक्षण भी दे रहा है।
गुजरात के कच्छ में सेवा इंटरनेशनल महिलाओं को हस्तशिल्प का प्रशिक्षण भी दे रहा है। कढ़ाई-बुनाई में इन महिलाओं ने बहुत ही अच्छा प्रदर्शन किया है। साड़ी, सूट, बेड-शीट, कुशन कवर, पर्स आदि पर इनके द्वारा की गई कढ़ाई सभी का ध्यान आकर्षित कर लेती है। सेवा इंटरनेशनल इन महिलाओं को न सिर्फ प्रशिक्षण देता है बल्कि इनके लिए बाजार भी उपलब्ध कराता है। वह इनके द्वारा निर्मित उत्पादों को शहर में बेचने का प्रबन्ध कराता है।
उड़ीसा में चूंकि पत्तल बनाना एक मुख्य उद्योग है, इसीलिए सेवा इंटरनेशनल महिलाओं को स्वावलम्बन के लिए पत्तल बनाना सिखा रहा है। इससे महिलाओं के लिए रोजगार का अवसर खुला है।
असम में सेवा इंटरनेशनल महिलाओं को स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान कर रहा है। वहां वह चिकित्सक उपलब्ध कराने के साथ ही उन्हें मुफ्त में दवाएं उपलब्ध कराता है।
महिलाओं के स्वालम्बन के लिए ही इसी प्रकार की गतिविधियां कर्नाटक के बेंगलुरू में भी चल रही है।

अतः समग्र रूप से देखा जाए तो सेवा इंटरनेशल भारत के उन क्षेत्रों में कार्यक्रम चला रहा है जो सरकार एवं अन्य एनजीओ की नजर में उपेक्षित हैं। सेवा इंटरनेशनल के इन कार्यक्रमों से महिलाएं भी काफी उत्साहित हैं और बढ़-चढ़कर इन गतिविधियों में भाग ले रही हैं। सेवा इंटरनेशल के यह प्रयास आगे और विस्तारित होंगे व अन्य क्षेत्रों में भी चलाए जाएंगे।

Monday, February 25, 2013

दिल्ली गैंग रेप घटनाक्रम



दिलवालों की दिल्ली के नाम से पुकारी जाने वाली दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 की सर्द रात को ऐसी शर्मसार घटना हुई जिसने सभी देशवासियों की धड़कनें तेज कर दी। 23 वर्षीय मासूम छात्रा के साथ छह दरिंदों ने दरिंदगी की सारी हदें पार कर दी। घटना की शिकार लड़की जिसे अमानत, दामिनी, निर्भया जैसे नामों से पुकारा गया, उसके लिए पूरे देशभर में आंदोलन खड़ा हो गया जिसने महिलाओं की सुरक्षा को लेकर नई बहस को जन्म दिया। सड़क से संसद तक इस घटना व आंदोलन की गूंज सुनाई दी। 

16 दिसंबर की रात की घटना पर सबसे पहले विस्तार से नजर डालते हैं। 23 वर्षीय छात्रा उस दिन अपने मित्र के साथ दक्षिण दिल्ली स्थित साकेत में ‘लाइफ ऑफ़ पाय’ फिल्म देख घर की ओर लौट रही थी। रात 9:30 बजे के करीब वह दोनों मुनिरका के बस स्टॉप पर पहुंचे जहां ऑटो चालकों ने उन्हें ले जाने से मना कर दिया और वह बस का इंतजार करने लगे। तभी सफेद रंग की एक अवैध चार्टर्ड बस उनके पास आकर रूकी और उनमें से एक लड़का कहने लगा कि वह बस द्वारका की ओर जा रही है। वह लड़का उस लड़की को ‘दीदी’ कहकर पुकार रहा था। बस में अन्य चार फर्जी पैसेंजर भी बैठे थे। लड़की और उसका दोस्त उस बस में सवार हो गए और उन्होंने 10-10 रूपए की टिकट भी खरीदी। बस जब अपने रूट से हटकर दूसरी तरफ जाने लगी तो लड़की के दोस्त को उन पर शक हुआ। उसने जब आपत्ति जताई तो वहां मौजूद सभी लोगों ने उन दोनों पर फब्तियां कसनी शुरू कर दी और कहने लगे कि वह दोनों इतनी रात को वहां क्या कर रहे थे। धीरे-धीरे दोनों पक्षों में बहस छिड़ गई और बस में सवार छह में से दो लोगों ने लड़की के दोस्त को लोहे की रोड से पीटना शुरू कर दिया और लड़की को घसीटते हुए पीछे वाली सीट पर ले गए और बारी-बारी उन सबने उसके साथ बलात्कार किया। उनमें से दो या तीन लोगों ने तो उसके साथ दो बार बलात्कार किया। लड़की ने बचाव में जब उनमें से तीन व्यक्तियों को दांतों से कांटा तो उन्होंने हैवानियत की सारी सीमाएं पार कर दी। उन्होंने एल-शेप का जंग खाया हुआ व्हील जैक उस लड़की के गुप्तांग में घुसाकर उसके अंतरंगों को बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया। पुलिस रिपोर्ट में बताए जा रहे नाबालिग बलात्कारी ने लड़की के साथ दो बार बलात्कार किया और अपने हाथ से उसकी आंत खींचकर बाहर निकाल दी। लड़की के दोस्त ने भी लड़की को बचाने की कोशिश की लेकिन उसके साथ उन दरिंदों ने बुरी तरह मारपीट की। आंखिकार उन दरिंदों ने दोनों को नग्न अवस्था में सड़क पर फेंक दिया। उन्होंने उस लड़की को बस से कुचलने की भी कोशिश की किन्तु उसके दोस्त ने उसे खींच लिया। 

दरिंदगी का यह खेल लगभग दो घंटों तक चलता रहा और उस दौरान उस लड़की की चीख किसी भी बाहरी व्यक्ति को नहीं सुनाई दी। एक निजी चैनल को दिए गए साक्षात्कार में लड़के ने बताया कि सड़क पर गुजरने वाले किसी भी व्यक्ति ने उनकी मदद नहीं की और वह काफी देर तक ऐसे ही सड़क पर पड़े कराहते रहें। एक व्यक्ति ने पुलिस को फोन कर उनके बारे में जानकारी दी और पुलिस पहुंचकर इस बात पर बहस करने लगी कि मामला किस थाने के अंतर्गत आता है। उनमें से किसी ने भी उन पर कपड़ा डालने की भी जरूरत नहीं समझी। कुछ देर बाद जब फैसला हो गया तो उन्हें पुलिस जीप में सफदरजंग अस्पताल ले जाया गया। जीप में भी लड़की को उठाकर उसके दोस्त ने ही रखा। अस्पताल पहुंचने पर चिकित्सकों ने उस लड़की को तुरन्त आपातकालीन चिकित्सा दी और उसे वेंटिलेटर पर रखा गया। चिकित्सकों ने पाया कि लड़की की केवल 5 प्रतिशत आंत ही बची है। 17 दिसंबर को लड़की की पहली सर्जरी हुई। वह लगातार गंभीर अवस्था में थी। 19 दिसंबर को दूसरी सर्जरी में इंफेक्शन के चलते लड़की की आंत निकाली गई। 21 दिसंबर को हालत में सुधार होने पर उसे वेंटिलेटर से हटाया गया किंतु 23 दिसंबर को बढ़ते इंफैक्शन को रोकने के लिए तीसरी सर्जरी की गई और फिर से वेंटिलेटर पर रखा गया। 25 दिसंबर की रात को उसे हार्ट अटैक आया जिससे उसके दिमाग को गंभीर क्षति पहुंची। चिकित्सकों का कहना था कि आंतरिक रक्त स्राव को तो नियंत्रित कर लिया गया है किंतु बिलिरूबीन स्तर में बढ़ोत्तरी के कारण लड़की की जान खतरे में है। मनमोहन सिंह द्वारा मंत्रिमंडल की बैठक में 26 दिसंबर को लड़की को ऑस्ट्रेलिया के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल में स्थानांतरित करने का निर्णय लिया गया जो बहु-अंग प्रत्यारोपण के लिए प्रमुख अस्पताल है। उसी दिन रात पौने बारह बजे लड़की को एयर एंबुलेंस के जरिए ऑस्ट्रेलिया ले जाया गया। 28 दिसंबर तक युवती के कई अहम अंगों ने काम करना बंद कर दिया और रात 2:15 बजे उसने अंतिम सांस ली। 

दरिंदगी का शिकार हुई वह लड़की जीना चाहती थी। सफदरजंग के चिकित्सकों ने कहा था कि इस तरह की दरिंदगी का मामला उन्होंने आज तक नहीं देखा। लेकिन वह उस लड़की की जीने की इच्छा देख हैरान थे। लड़की ने दो बार बयान भी दर्ज कराया और अस्पताल में उन दरिंदों के बारे में भी पूछा कि वह पकड़े गए या नहीं। माउंट एलिजाबेथ अस्पताल के चिकित्सक भी उसके जीने का जज्बा देखकर हैरान थे। उसने अस्पताल में कभी इशारों से तो कभी लिखकर बात भी की थी किन्तु इच्छाशक्ति के बावजूद भी उस लड़की ने प्राण त्याग दिए। 

कथित आरोपी
पुलिस ने घटना के 24 घंटों के दौरान सभी कथित आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। बस चालक राम सिंह और उसके भाई मुकेश सिंह को राजस्थान में गिरफ्तार किया गया, वहीं जिम इंस्ट्रक्टर विनय शर्मा और फल विक्रेता पवन गुप्ता को दिल्ली में ही गिरफ्तार किया गया। नाबालिग आरोपी, जिसके नाम का अभी तक खुलासा नहीं किया गया है लेकिन उसे राजू कहकर बुलाया जाता है, उसे आनंद विहार बस अड्डे से गिरफ्तार किया गया। छठे आरोपी अक्षय ठाकुर को बिहार में औरंगाबाद से गिरफ्तार किया गया। वह काम की तलाश में दिल्ली आया था। 

राजू ने पूछताछ में खुलासा किया कि ये सब उस दिन पार्टी कर रहे थे। राजू को रामसिंह से आठ हजार रूपये लेने थे। मुकेश ने राजू की बात रामसिंह से करवाई थी और उसने उसे दिल्ली बुला लिया था। 16 दिसंबर की रात को इन सबने चिकन खाया था व शराब के नशे में बस लेकर लड़की उठाने के लिए निकले थे। आरके पुरम के सेक्टर 5 के पास इन्होंने सफेइ चुन्नी ओढ़े एक युवती को भी उठाने का प्रयास किया था। किन्तु वहां एक व्यक्ति ने उस युवती को बचा लिया था। थोड़ा सा आगे चलने के बाद काले कपड़ों पहने एक युवती को भी उठाने का प्रयास किया था किन्तु मुकेश ने आगे बस चला दी और वह नहीं उठा सके। वसंत विहार इलाके में इन्होंने रामाधार को बस में बैठाकर उससे 8000 रूपये व मोबाइल छीन लिया। इसके बाद इन्होंने पीडि़ता व उसके दोस्त को बस में चढ़ाकर हैवानियत की सारी हदें पार कर दी। उनमें से एक पवन गुप्ता ने तो अपना जुर्म कबूलते हुए स्वयं को फांसी की सजा भी दे देने को कहा। 

अक्षय ठाकुर ने पूछताछ में बताया कि गैंगरेप के मुख्य आरोपी रामसिंह ने न केवल लड़की के साथ बलात्कार किया बल्कि वह अपने साथियों को हंसते हुए सबूत नष्ट करने के लिए दरिंदगी के तरीके के बारे में भी बता रहा था। लड़की के साथ गैंगरेप के बाद दंरिदगी रामसिंह ने की थी और लड़की को राजू और विनय ने काबू में कर रखा था। गैंगरेप के दोषियों में से किसी ने भी रामसिंह को रोकने की कोशिश नहीं की। 

19 दिसंबर को लड़की के दोस्त ने गवाही भी दी और 21 दिसंबर को पुलिस उपायुक्त की उपस्थिति में उपप्रभागीय मजिस्ट्रेट ने सफदरजंग अस्पताल में लड़की का बयान भी दर्ज किया। 

आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 365 (अपहरण), 376 जी (गैंग रेप), 377 (कुकर्म), 394 (लूटपाट), 395 (डकैती), 120 बी (आपराधिक षड्यंत्र), 396 (डकैती के दौरान हत्या), 201 (सबूत मिटाना) और धारा 34 (एक से ज्यादा वारदातों में शामिल होना) दर्ज की गई है।

उबल पड़ा जनाक्रोश
गैंगरेप के विरोध में 18 दिसंबर को लोग सड़कों पर उतर आए और दोषियों को कड़ी सजा दिलाने की मांग व लड़की की सलामती की दुआ करने लगे। देशभर में आंदोलनकारियों की संख्या दिन पर दिन बढ़ती चली गई। आंदोलन में महिलाओं ने भी बढ़-चढ़ कर गुस्सा दिखाया और महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा एक बार फिर सामने आया। इंडिया गेट, जंतर-मंजर, विजय चैक, मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के आवास और संसद के बाहर जैसे मुख्य स्थलों समेत कई जगहों पर प्रदर्शन हुआ जिसको रोकने के लिए सुरक्षा बलों को तैनात किया गया। प्रदर्शनकारियों पर कभी लाठियां बरसाई गई तो कभी आंसू गैस छोड़ी गई। हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए 375 आंसू गैस के सिलिंडरों का प्रयोग किया। कई महत्वपूर्ण मेट्रो स्टेशनों को भी बंद किया गया जिससे प्रदर्शनकारी गंतव्य तक न पहुंच पाए। प्रदर्शन के दौरान एक पुलिसकर्मी सुभाष तोमर की भी मौत हो गई। लड़की की मौत के बाद 29 दिसंबर को देशभर में लोगों ने कैंडल मार्च किया। गैंगरेप के विरोध में प्रदर्शनकारियों ने काले कपड़े पहने और कई प्रदर्शनकारियों ने मुंह पर काले रंग की पट्टी भी बांधी। लड़की की मौत की दुखद खबर को लेकर देशभर में नए साल का जश्न भी नहीं मनाया गया। भारत के सबसे सर्द दिनों में भी लोगों का गुस्सा कम नहीं हुआ और सड़कों पर उन्होंने जमकर प्रदर्शन किया। ‘वट्स ऐप’ मोबाइल एप्लीकेशन और फेसबुक, ट्विटर जैसी सोशल साइटों पर भी गैंगरेप का जमकर विरोध हुआ। कई लोगों ने विरोध जाहिर करते हुए अपने प्रोफाइल फोटो की जगह पर काले रंग की एक बिन्दू लगाई। 

देशभर में हुए प्रदर्शन का ही परिणाम था कि महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा गंभीर रूप से उठाया गया और सरकार ने भी महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए। रेप के मामलों का जल्दी निपटारा करने के लिए दिल्ली में पांच फास्ट ट्रैक कोर्ट की शुरूआत की गई जिसमें सबसे पहले लड़की के केस की सुनवाई शुरू की गई। इसके अलावा हरियाणा में भी 12 फास्ट ट्रैक कोर्ट की शुरूआत की गई है जिसमें केवल महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की कार्यवाही की जाएगी। इसके अलावा भारत के अन्य राज्यों में भी महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उपाए किए गए हैं।

कहां कैसी सजा
अमेरिका- बलात्कार के लिए अमेरिका के अधिकतर हिस्सों में उम्रकैद की सजा है। कुछ प्रांतों में बलात्कार के दोषी को केमिकल और सर्जिकल तरीके से नपुंसक बनाने का विकल्प भी मौजूद है। 
ग्रेट ब्रिटेन- यूके में रेप की सजा उम्रकैद है। 
रूस- हिंसा और बलात्कार के लिए यहां 4 से 10 साल तक की सजा दी जाती है। 
फ्रांस- यहां बलात्कार की अधिकतम सजा 20 साल की जेल है। 
ऑस्ट्रेलिया- यहां बलात्कार की सजा सात साल है। कुछ मामलों में दोषी की सजा को निलंबित भी किया जा चुका है। 
चेक गणराज्य- जो दोषी उम्रकैद जैसी मुश्किल सजा से बचना चाहते हैं, उनके पास नपुंसक बनकर जेल से बाहर जाने का विकल्प भी है। 
दक्षिण कोरिया- यहां बलात्कार की अधिकतम सजा 15 साल है। यहां बलात्कारी को नपुंसक बनाए जाने का विधेयक भी लंबित है। 

किसने क्या कहा
लड़की के दादा- मेरी पोती बहुत बहादुर थी और उसने आंखिर तक हार नहीं मानी। बिटिया की पढ़ाई पूरी हो गई थी और उसे 35 हजार तनख्वाह भी मिलनी शुरू हो गई थी। लेकिन बिटिया अब हमसे दूर जा चुकी है। हम बस यही चाहते हैं कि सरकार कुछ ऐसा करे कि हमारी पोती जैसी घटना किसी और लड़की के साथ न हो। 

लड़की के पिता- घटना के बारे में पहली बार मुझे 16 दिसंबर की रात सवा ग्यारह बजे पता चला था। हालांकि तब भी मुझे यह पता नहीं था कि मेरी बेटी के साथ वास्तव में क्या हुआ है। 16 दिसंबर को रात 10.30 बजे मैं काम से लौटा था। मेरी पत्नी बेटी को लेकर चिंतित थी, क्योंकि वह घर नहीं लौटी थी। हमने बेटी और उसके दोस्त के मोबाइल पर फोन किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। रात 11.15 बजे अस्पताल से फोन आया कि मेरी बेटी के साथ कोई हादसा हो गया है। अस्पताल में वह बिस्तर पर पड़ी थी। उसकी आंखें बंद थीं। मैंने उसके माथे पर हाथ फेरा और उसका नाम लेकर पुकारा। उसने आंखें खोलीं और रोना शुरू कर दिया। मैंने अपने आंसुओं पर काबू किया और उसे दिलासा देते हुए कहा कि सब ठीक हो जाएगा। तब तक मुझे असलियत मालूम नहीं थी। बाद में पुलिस ने असलियत बताई। इस जघन्य अपराध के लिए अपराधियों को फांसी की सजा मिलनी चाहिए। 

प्रणब मुखर्जी, राष्ट्रपति- वह एक बहादुर और साहसी लड़की थी, जो अपनी जिंदगी और अपने सम्मान के लिए आंखिरी सांस तक लड़ी। वह एक सच्ची नायक और भारतीय युवाओं व महिलाओं की सर्वश्रेष्ठ प्रतीक है। देश की बहादुर लड़की की मौत पर सारा राष्ट्र रो रहा है। 

मनमोहन सिंह, प्रधानमंत्री- भले ही वह जिंदगी की जंग हार गई हो लेकिन अब यह हमारी जिम्मेदारी है कि उसका बलिदान बेकार न जाने दें। युवा भारत के इस आक्रोश को पूरी तरह समझा जा सकता है। अगर हम इस ऊर्जा और भावनाओं का सकारात्मक प्रयोग कर सकें तो पीडि़त युवती को यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी। 

सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष- आज हम भारतीय को लग रहा है कि उसने अपनी बहन या बेटी को खो दिया। एक महिला व एक मां होने के नाते मैं इस दर्द को समझ सकती हूं। दिल इस दुख से भारी हो रहा है। लड़की का संघर्ष बेकार नहीं जाएगा। 

पी. चिदंबरम, वित मंत्री- चलती बस में हुई इस दरिंदगी की घटना ने पूरे जनमानस को हिला दिया है। यह शर्मनाक है। एक पुरूष होने के नाते मैं शर्मिंदा हूं। मर्द इस तरह का बर्ताव क्यों करते हैं? लोगों का गुस्सा जायज़ है। 

अरूण जेटली, भाजपा- आज हमारे सिर शर्म से झुक गए हैं। उसकी जिंदगी ऐसे माहौल की भेंट चढ़ गई जिसमें महिलाएं सुरक्षित नहीं है। हमें अब कानूनों में सुधार करना होगा और ऐसा वातावरण तैयार करना होगा जिसमें महिलाएं सम्मान के साथ रह सकें। 

ममता बनर्जी, मुख्यमंत्री, पश्चिम बंगाल- सारा देश सदमें मंे है, मैं भी। इसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। आईपीसी और सीआरपीसी के प्रावधान पुराने हो चुके हैं। सख्त कानून बनाए जाने की जरूरत है। 

सुषमा स्वराज, विपक्षी नेता- लड़की की मौत देश के लिए सदमा है। हमें और जागरूक होने की जरूरत है जिससे हम अपनी बेटियों को सुरक्षित भविष्य दे सकें। मैं दोषियों को फांसी दिए जाने की मांग फिर दोहराती हूं। 

शीला दीक्षित, मुख्यमंत्री, दिल्ली- हां मैं दुष्कर्मियों के लिए सजा-ए-मौत की पक्षधर हूं। हमें ऐसे कुकृत्य के लिए अपराधी के खिलाफ सख्त से सख्त सजा का प्रावधान करना चाहिए जिससे वह अपराधियों के लिए मिसाल बन सकें। 

सुशील कुमार शिंदे, गृहमंत्री- गैंगरेप जैसी घृणित वारदात दिल्ली में हुई। ऐसे दुर्लभतम मामलों में दोषियों को कड़ी सजा दिलाने के लिए कानून में संशोधन किया जाएगा। सरकार इसके लिए कटिबद्ध है। घटना की जांच के लिए न्यायिक आयोग का गठन किया जाएगा। यह आयोग महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उपाय भी सुझाएगा। इस पर जल्द से जल्द कार्रवाई होगी। 

मायावती, बसपा अध्यक्ष- बलात्कार की शिकार महिलाओं को आर्थिक मदद तथा नौकरी देने की भी व्यवस्था करनी चाहिए और दोषियों के लिए कड़ा से कड़ा कानून बनाया जाना चाहिए। 

किरण बेदी, सामाजिक कार्यकर्ता- आज बड़े शोक का दिन है। अपराधियों को सजा दिलाने का कानून पूरी तरह निष्क्रिय साबित हुआ। 

प्रकाश सिंह बादल, मुख्यमंत्री पंजाब- केंद्र को तत्काल कठोर कानून बनाने चाहिए। जिससे कि फिर कोई ऐसा सोचने की हिम्मत न जुटा सके। ऐसी सजा दी जानी चाहिए जो औरों के लिए उदाहरण बने। 

इरफान पठान, क्रिकेटर- ऐसी घटनाएं जब सामने आती है तो मन दुखी होता है। इस तरह की हैवानियत का अब अंत होना चाहिए। महिलाओं के खिलाफ रेप केस बढ़ते जा रहे हैं जिन पर रोक लगनी चाहिए। सरकार को अपराधियों के प्रति सख्त कदम उठाने होंगे। जिस तरह से आज आवाम सड़कों पर उतरी है, उसे देखते हुए सरकार को कठोर कानून बनाने की जरूरत है। अब समय आ गया है कि समाज के लोगों को मिलकर यह सोचना होगा कि इस तरह की घटनाएं क्यों हो रही हैं?

बॉलिवुड में भी शोक की लहर
लता मंगेश्कर- बस बहुत हो चुका। यह निर्भया या दामिनी की मौत नहीं है बल्कि देश में इंसानियत की मौत है। समय आ गया है सरकार गहरी नींद से जागे और इस जघन्य अपराध के लिए अपराधियों को कड़ी सजा दे। 

अमिताभ बच्चन- अमानत कहें या दामिनी, अब ये सिर्फ नाम हैं। उसके शरीर की मौत हो गई है। लेकिन उसकी आत्मा हमेशा हमारे दिलों को झकझोरती रहेगी। 

शाहरूख खान- मुझे खेद है कि मैं एक पुरूष हूं। वादा करता हूं कि मैं तुम्हारी लड़ाई लड़ूंगा। मैं महिलाओं का सम्मान करूंगा ताकि मुझे अपनी बेटी के लिए सम्मान हासिल हो सके। 

शबाना आजमी- हमारी नपुंसकता हमारे चेहरे पर साफ झलकती है। यह घटना हमारे देश को जगाने की वजह बन सकती है जिसकी हमें बेहद जरूरत है। 

जावेद अख्तर- गैंगरेप की पीडि़ता भले ही हमारे बीच नहीं है लेकिन उसकी मौत कई सवालों का जवाब मांग रही है। 

मनोज वाजपेयी- उसकी मौत से देश में कई मौते हुई हैं। उसकी आत्मा को शांति मिल पाएगी। समूचे देश के लिए यह अवसाद का क्षण है। 

अक्षय कुमार- हमारी फाइटर जिंदगी की जंग हार गई। उसकी गलती सिर्फ इतनी थी कि वह सुरक्षित मानी जाने वाली राष्ट्रीय राजधानी की सड़कों पर रात में घूम रही थी। देश सही मायनों में तभी आजाद होगा जब महिलाएं रात में सड़कों पर आजादी से बिना डर के घूम सकेंगी। 
शेखर कपूर- उसकी कुर्बानी हम भूल गए तो यह विश्वासघात होगा। सत्ताधारियों को उम्मीद होगी कि हम उसे भूल जाएंगे, किंतु यदि हम भूल गए तो वाकई यह एक विडंबना होगी। 
अनुपम खेर- यह तो मानवता की हत्या है। यह गैंगरेप पीडि़ता से ज्यादा घटिया व्यवस्था की मौत है। 

विवादास्पद बयान
आसाराम बापू- बालात्कार का शिकार हुई बिटिया भी उतनी ही दोषी है। वह दोषियों को भाई कहकर पुकार सकती थी। इससे उसकी इज्जत और जान भी बच सकती थी। क्या ताली एक हाथ से बज सकती है, मुझे तो ऐसा नहीं लगता। 

अभिजीत मुखर्जी, कांग्रेस सांसद और राष्ट्रपति के पुत्र- छात्राओं के नाम पर रैलियों में डेंटेड-पेंटेड महिलाएं पहुंच रही हैं। दिल्ली में जो हो रहा है वो गुलाबी क्रांति है, जिसका जमीनी हकीकत से कोई लेना-देना नहीं है। पहले ये महिलाएं कैंडल लेकर जुलूस निकालती हैं और फिर शाम को डिस्कोथेक में जाती हैं। 

संजय निरूपम, कांग्रेस सांसद- चार दिन हुए नहीं और आप राजनीतिक विश्लेषक बनती फिर रही हैं। आप तो टीवी पर ठुमके लगाती थीं। 

डॉ अनीता शुक्ला, कृषि वैज्ञानिक- छह लोगों से घिरने के बाद यदि युवती आत्मसमर्पण कर देती तो उसकी आंतें निकालने की नौबत नहीं आती। देर रात युवती को अपने बॉयफ्रेंड के साथ घूमने की क्या जरूरत थी।

अनीसुर रहमान, माकपा नेता- पश्चिम बंगाल का रवैया रेप पीडि़तों के लिए ठीक नहीं। मैं ममता बनर्जी से पूछना चाहता हूं कि वे रेप के लिए कितना चार्ज लेंगी।