Wednesday, September 21, 2011

सुरक्षा जांच में आत्मनिर्भर हो भारत

‘‘सुरक्षा एजेंसियों के पास नक्सलियों और आतंकियों से लड़ने की क्षमता नहीं है’’ यह वक्तव्य प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का है। इससे पहले गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने भी ऐसे ही विचार व्यक्त किए थे। दिल्ली हाईकोर्ट पर हाल ही में हुए आतंकवादी हमले की जांच को लेकर राष्ट्रीय जांच एजेंसी की कार्यप्रणाली से स्पष्ट हो जाता है कि आतंकवाद से भयभीत भारत सुरक्षा के मामले में आत्मनिर्भर नहीं है। बम धमाके के संदर्भ में सबूत जुटाने में नाकाम राष्ट्रीय जांच एजेन्सी ने अमेरिकी जांच एजेंसियों सीआईए और एफबीआई से मदद की गुहार लगाई है।

दिल्ली हाईकोर्ट पर हाल ही में हुए हमले के बाद एनआईए के पास सबूत के नाम पर केवल इंडियन मुजाहिदीन द्वारा भेजा गया ई-मेल है, जिसमें उसने बम धमाके की जिम्मेदारी ली थी। जांच अधिकारियों द्वारा आशंका जताई जा रही है कि आतंकवादियों ने स्काइप वेबसाइट के माध्यम से बातचीत की होगी। भारतीय जांच एजेन्सियां इस वेबसाइट के माध्यम से हुई किसी भी बातचीत की निगरानी करने में सक्षम नहीं है। इन्हीं सबको देखते हुए भारत ने अमेरिकी एजेंसियों से जांच के लिए मदद मांगी है। सुरक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर न बनने के कारण ही भारत को अमेरिका की मदद लेनी पड़ रही है जिसके कारण अमेरिका अपने चश्मे से इस मामले की जांच पड़ताल कर सकता है।

भारत के रक्षा बजट की बात की जाए तो वर्ष 2011-12 में यह 1,64,415 करोड़ निर्धारित किया गया है। इसके बावजूद भी भारत जांच के नए संसाधन जुटाने में सक्षम नहीं है और जांच के लिए अब भी विदेशों पर ही निर्भर है।

दुर्भाग्य की बात है कि मुंबई में हुए आतंकवादी हमले के बाद भी भारत कई हमलों का शिकार हो चुका है। सुरक्षा व्यवस्था में चूक का ही नतीजा है कि आतंकवादी बेखौफ होकर भारत में हमलों को अंजाम दे रहे हैं। एसएटीपी के अनुसार दिल्ली में वर्ष 1997 से लेकर अब तक कुल 31 बम धमाकें हो चुके हैं जिनमें 134 लोगों की जान जा चुकी है। वहीं मुंबई में वर्ष 1993 से लेकर अब तक कुल 14 आतंकवादी हमलें हो चुके हैं जिनमें 708 लोगों की जान गई है। सुरक्षा के नाम पर हर कहीं चार पुलिसवाले तो जरूर नजर आ जाते हैं लेकिन वह जांच के नाम पर औपचारिकता ही निभाते हैं। हमलों के पीछे एक कारण भारत में सजा देने का ढुलमुल रवैया भी नजर आता है। अमेरिका में हुए 9/11 हमले के बाद अमेरिका इतना सतर्क हो गया कि उस पर दोबारा कोई हमला नहीं हुआ। अमेरिका ने अपने ऊपर हुए आतंकवादी हमले का बदला अलकायदा प्रमुख लादेन को मारकर लिया। वहीं भारत ने अपने दुश्मनों अफजल गुरू और कसाब को अभी तक फांसी नहीं दी है।

भारत के पड़ोसी देश भी भारत को घेरने की रणनीति बना रहे हैं। भारतीय सीमाओं पर बार-बार घुसपैठ की कोशिशों के कारण सुरक्षा को लेकर हमारी चिंताएं बढ़ती जा रही हैं। हमारे प्रमुख पड़ोसी देश चीन द्वारा भारत से लगने वाली लगभग 3488 किमी. लंबी सीमाओं पर से बार-बार घुसपैठ की कोशिश की गई है। वहीं नेपाल की लगभग 1751 किमी. की सीमाएं पूरी तरह खुली हुई हैं। भारत-बांग्लादेश के बीच 4096 किमी. लंबी सीमाएं सुरक्षा बलों के हवाले है लेकिन इन सीमाओं में कई ऐसे दुर्गम क्षेत्र हैं जहां निगरानी संभव नहीं है। पाकिस्तान के साथ 3323 किमी. लंबी सीमा रेखा भारत की चिंता का सबब बने हुए है। गृह मंत्रालय के अनुसार जम्मू कश्मीर में वर्ष 2008 से लेकर अब तक घुसपैठ के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2010 में जम्मू-कश्मीर में कुल 489 घुसपैठ के मामले सामने आए जबकि वर्ष 2009 में यह आंकड़ा 485 और वर्ष 2008 में 342 था।

हालही में आई रिपोर्ट के अनुसार भारतीय रक्षा विशेषज्ञों ने बताया है कि चीन थंडर ड्रैगन 2014’ ऑपरेशन की योजना बना रहा है जिसके तहत वह पाकिस्तान के साथ मिलकर वर्ष 2014 में भारत पर हमला कर सकता है। भारत को अपनी सुरक्षा नीति और नेटवर्क बढ़ाना होगा जिससे वह रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सके और अपने हमलावरों से निपटने में सक्षम हो सके।

No comments:

Post a Comment