सूरज की रोशनी से संपन्न भारत ने सौर ऊर्जा के महत्व को समझ लिया है। नेशनल एक्शन प्लान ऑन क्लाइमेट चेंज (एनएपीसीसी) भारत में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने का कार्य कर रहा है। आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2020 तक सौर ऊर्जासे केवल 20 हजार मेगावॉट बिजली ही प्राप्त हो सकेगी जो भारत की विद्युत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पर्याप्त नहीं है । इस क्षेत्र में सरकार को अधिक निवेश की जरूरत है। वर्तमान समय में सौर ऊर्जा की लागत ज्यादा होने के कारण भारत के लोग इसकी ओर आकर्षित नहीं हो रहे हैं । सौर ऊर्जा की लागत 17 से 22 रूपये प्रति यूनिट पड़ती है। सरकार को सौर ऊर्जा के क्षेत्र में निवेश कर सौर ऊर्जा को सस्ता बनाने के प्रयास करने चाहिए। भारत की 6 करोड़ 75 लाख ग्रामीण जनसंख्या और 37 लाख शहरी जनसंख्या विद्युत के लिए मिट्टी के तेल का प्रयोग करती हैं। इसकी जगहसौर ऊर्जा से जलने वाली लालटेनों को बढ़ावा दिया जाए तो कच्चे तेल की बचत की जा सकती है। वहीं सौर ऊर्जा से चलने वाले वाहनों व अन्य सामानों को भी बढ़ावा देना आवश्यक है जिससे कच्चे तेल पर से निर्भरता कम होने के साथ-साथ वातावरण भी स्वच्छ रहे। भारत में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए फोटोवोल्विक प्रणाली विकसित किए जाने की जरूरत है।
आज विश्व में ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति खाड़ी देश (ईरान, यूएई, ओमान, बहरीन, कतर, सऊदी अरब और कुवैत) कर रहे हैं क्योंकि वहां कच्चे तेल, कोयला, खनिजों आदि के भंडार प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं और इन्हीं भंडारों के कारण खाड़ी देशों की अर्थव्यवस्था मजबूत है। विकसित देश ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए खाड़ी देशों पर निर्भर हैं जिसके कारण ये देश विश्व नीतियों में भी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। भविष्य पर गौर किया जाए तो अगले 40 वर्षों के दौरान गैर नवीकरणीय स्रोत जैसे कोयला, पेट्रोल आदि का अस्तित्व खतरे में है जिसका प्रभाव खाड़ी देशों की अर्थव्यवस्था पर विशेष तौर पर पड़ने वाला है। ऊर्जा के इन संसाधनों की समाप्ति के साथ ही खाड़ी देशों की अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी। ऐसे में भारत ऊर्जा के क्षेत्र में विश्व शक्ति के रूप में बनकर उभर सकता है। भारत के पास अक्षय स्रोत प्रचुर मात्रा में उपल्ब्ध है और मजबूत नीतियों और निवेश के साथ सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, महासागर तरंगों से प्राप्त ऊर्जा, हाइड्रोजन ऊर्जा को विकसित कर अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान की जा सकती है। वहीं विश्व की ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी भारत आगे बढ़ सकता है। ऐसा यदि संभव होता है तो एक ओर जहां अभी भारत ऊर्जा आपूर्ति के लिए आयात पर निर्भर है, वहीं भविष्य में यह ऊर्जा हब बन सकता है और विश्व के अन्य देशों को भी ऊर्जा निर्यात कर सकता है। इससे भारत का विश्व की नीतियों में भी सक्रिय योगदान बढ़ेगा क्योंकि सुदृढ़ अर्थव्यवस्था वाले देशों का वैश्विक नीतियों पर विशेष प्रभाव पड़ता है।
इस बेहतर भविष्य के लिए अभी से कवायद किए जाने की जरूरत है। इसके लिए भारत को अक्षय स्रोतों से प्राप्त ऊर्जाको बढ़ावा देने के साथ-साथ ऊर्जा की बचत भी करनी होगी। वैसे भी भारत अपनी बचत प्रवृत्ति की आदतों के कारण ही वैश्विक मंदी से उबर पाया है। इसके लिए सरकार को सौर ऊर्जा से चलने वाले वाहनों को बढ़ावा देना होगा और सरकार को भी सार्वजनिक वाहनों में निवेश अधिक करना होगा जिससे भारत में सार्वजनिक वाहनों की संख्या बढ़ें और लोग निजी वाहनों के स्थान पर सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग करें। वाहनों की संख्या पर गौर किया जाए तो भारत में जहां वर्ष 1980 में केवल 30 लाख निजी वाहन थे वहीं वर्ष 2005 तक इनकी संख्या 7 करोड़ 20 लाख तक पहुंच गई है और सकल घरेलू उत्पाद में 6 प्रतिशत तक वृद्धि के साथ वर्ष 2030 में निजी वाहनों की संख्या 70 करोड़ 80 लाख तक पहुंचने की संभावना है। वाहनों की संख्या कम करना भी सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन गई है। इसके लिए निजी वाहनों पर करों में वृद्धि करके और सार्वजनिक वाहनों की संख्या में इजाफा कर स्थिति काबू में की जा सकती है। ऊर्जाके क्षेत्र में भारत को मजबूती प्रदान करने के लिए टेरी (द एनर्जी एंड रिसॉर्स इंस्टीट्यूट) ने सरकार को कुछ सुझाव दिए हैं जिसमें सौर ऊर्जा को बढ़ावा देना, कोयला पर से निर्भरता कम कर इसे भावी पीढ़ी के लिए सुरक्षित करना, ग्रामीण क्षेत्रों में जैव आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना शामिल है। टेरी ने एलपीजी, मिट्टी के तेल और बिजली पर दी जाने वाली सब्सिडी को भी खत्म करने की सलाह दी है क्योंकि इसका लाभ आम लोगों तक न पहुंचकर बिचौलियों तक पहुंचता है। टेरी का कहना है कि लोगों को बायोमीट्रिक कार्ड के जरिए सीधा लाभ पहुंचाना चाहिए। वहीं सरकार को भी लोगों को बिजली बचत के प्रति जागरूक करने के प्रयास करने चाहिए ।
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