Tuesday, October 11, 2011

गजल अनाथ हो गई…


चिट्ठी न कोई संदेश जाने वो कौन सा देश जहां तुम चले गए… इस गीत को अपने सुरों में पिरोने वाले गजल सम्राट जगजीत सिंह जी अपने करोड़ों प्रशंसकों को छोड़ चले गए हैं। विश्व में अपनी गजल गायकी का लोहा मनवाने वाले जगजीत जी का 10 अक्टूबर 2011 को ब्रेन हैमरेज के कारण निधन हो गया जिससे विश्व में उनके करोड़ों प्रशंसक आहत है।

गजल गायकी के प्रणेता जगजीत सिंह जी का जन्म 8 फरवरी 1941 को राजस्थान के श्रीगंगानगर में हुआ। संगीत की विरासत बचपन में उन्हें अपने पिता से मिली, जिसके बाद पंडित छग्नलाल शर्मा के सान्निध्य में उन्होंने शास्त्रीय संगीत की विधा प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने सैनिया घराने के उस्ताद जमाल खान साहब से ख्याल, ठुमरी और ध्रुपद की बारीकियां सीखी। उनके पिता उन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवा में भेजना चाहते थे लेकिन जगजीत जी अपने सुरों का जादू बिखेरना चाहते थे। कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय में पढ़ते हुए गायकी की ओर उनका रूझान बढ़ा और वह वर्ष 1965 में मुंबई चले आए। रोजी रोटी के लिए वह शुरूआत में जिंगल्स व शादी समारोहों में गाया करते थे। वर्ष 1967 में उनकी मुलाकात चित्रा जी से हुई और दो साल बाद इन दोनों की शादी हो गई।

जगजीत सिंह जी की पहली एल्बम ‘द अनफोर्गेटेबल’ ने काफी प्रसिद्धि पाई। शायरों की महफिल में सजने वाली गजल को जगजीत सिंह जी ने अपने सुरों में पिरोकर आम आदमी से जोड़ा जिसे उनके प्रशंसकों ने हाथों-हाथ लिया। जगजीत सिंह जी और चित्रा जी साथ में गजल गाया करते थे। ‘हम तो है परदेस में’, ‘मिट्टी दा बावा’, ‘ये तेरा घर ये मेरा घर’ जैसे कई प्रसिद्ध गीतों ने साबित कर दिया कि जगजीत साहब और चित्रा जी की जोड़ी गायकी में भी जमती है लेकिन जल्द ही इनके जीवन में एक ऐसा मोड़ आया जिसने इन दोनों के जीवन को झकझोर कर रख दिया। वर्ष 1990 में जगजीत जी और चित्रा जी के बेटे विवेक की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। बेटे की मौत के सन्नाटे में चित्रा जी ने गायकी को हमेशा के लिए अलविदा कर दिया लेकिन जगजीत जी ने गजलों से अपना नाता नहीं तोड़ा और अपने आंसुओं को सुरों में पिरोते रहें। उनका यह दर्द उनकी गायकी में बखूबी झलकता था। ‘ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो’, ‘शाम से आंख में नमी सी है’, ‘तुम चले जाओगे तो सोचेंगे, हमने क्या खोया हमने क्या पाया’, ‘चिट्ठी न कोई संदेश’ जैसी गजलों में दर्द को महसूस किया जा सकता है।

‘होठो से छू लो तुम’, ‘बात निकलेगी तो दूर तलक’, ‘कल चैदहवी की रात’, ‘सरकती जाए है रूख से नकाब’, ‘झुकी झुकी सी नज़र’, ‘तेरा चेहरा’ जैसी गजलों को उन्होंने अपने भावों में सराबोर करते हुए इस तरह सुरों में पिरोया कि यह गजलें हमेशा के लिए अमर हो गई। जगजीत साहब ने हिंदी के अलावा पंजाबी, बांग्ला, उर्दू, गुजराती, सिंधी और नेपाली में भी गीत-गजल गाए हैं। कला के क्षेत्र में उनके इस अमूल्य योगदान के लिए वर्ष 2003 में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।

जगजीत सिंह जी ने लोगों को न केवल गजलों से परिचित कराया, बल्कि गालिब, मीर, मजाज, जोश और फिराक जैसे शायरों से भी रूबरू कराया। लाइव कन्सर्ट में तो जगजीत सिंह जी अपनी गजल को नया आंदाज दे देते थे। अपनी ही गजल को अलग-अलग सुरों में पिरोकर व बीच में शायरों की पंक्तियां डालकर श्रोताओं को मुग्ध कर लेते थे। सितार, तबला, वॉयलिन, बासुरी जैसे साजों के साथ उनकी गजलों की जुगलबन्दी से पूरा स्टेडियम गूंज उठता था। उन्होंने गजलों के साथ कई प्रयोग किए। उन्होंने गजलों को जब फिल्मी गीतों का रूप देना शुरू किया तो आम आदमी ने गजलों में दिलचस्पी दिखानी शुरू की। इससे कई गजल गायकों ने आहत होकर उन पर आरोप लगाने शुरू कर दिए कि उन्होंने गजलों के वास्तविक रूप से छेड़छाड़ की है। इसके जवाब में जगजीत जी ने केवल इतना ही कहा कि उन्होंने प्रस्तुति में थोड़े बदलाव जरूर किए है, लेकिन शब्दों से छेड़छाड़ बहुत कम है। दरअसल जगजीत जी की गायकी से पहले गजल की ओर बहुत कम ही लोगों का रूझान था, लेकिन जगजीत जी की गजल शैली ने आम लोगों के दिलों को छू लिया। उनकी गजलों को सुनने वाले लोग सोचने पर मजबूर हो जाते हैं और भावविभोर होकर गजल से व्यक्तिगत जुड़ाव महसूस करते हैं।

जगजीत सिंह जी ने 80 से ज्यादा एल्बमों में अपनी आवाज दी है। वह गजलों के साथ हमेशा नए प्रयोग करते रहते थे। उनका कहना था कि ‘‘कल क्या गाया यह भूल जाओ, कल क्या गाना है उसके बारे में सोचो’’ वह रोज अलग गायकी की ओर अधिक बल देते थे।

जगजीत सिंह जी ने अपनी आवाज के जादू में अल्फाजों को अपने सुरों में इस तरह पिरोया है कि उनकी गजलें हमेशा के लिए अमर हो गई है। गजल गायकी को नया आयाम देने वाले जगजीत साहब को गजल सम्राट के नाम से जाना जाने लगा। जगजीत जी के निधन से भारतीय संगीत की दुनिया को बहुत बड़ी क्षति पहुंची है। उनके जाने से संगीत की दुनिया में सन्नाटा छा गया है।

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